पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/२४५

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गुप्तवंशका राज्य विस्तार २१५ राज्यप्रबन्ध । 1 1 उस समयके राज-प्रवन्ध, और शासन- 'उस समयका पद्धतिक विषयमें भी फाहियानने, अत्युत्तम सम्मति दी है। वह लिखता है कि राज्य जन- ताको वातों में बहुत कम हस्तक्षेप करता है। जिसका जी चाहे आये, जिसका जो चाहे जाये, कोई रुकावट या निषेध नहीं है। [चन्द्रगुप्तके समयमें अनुज्ञापत्र (पासपोर्ट) का रिवाज था। प्रायः अपराधोंके बदलेमें जुर्माना देना पड़ता है। मृत्युदण्ड 'किसीको नहीं दिया जाता और न किसी व्यक्तिको साक्ष्यके लिये या अपराध-प्रकाशनके लिये पीड़ित किया जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि इस विपयमें गुप्तवंश पराकाष्ठाको पहुंच चुका था। जिस बातका धन्या सम्राट अशोक जैसे कोमल- हृदय, दयावान, और लोकप्रिय शासकपर रह गया था, उसको गुप्त राजाओंने दूर कर दिया । जो राज्य प्रजाकी पातोंमें यहुत अधिक हस्तक्षेप करता है वह कभी भी लोकप्रिय नहीं हो. सकता। लोगोंको दीर्घ कालोंके लिये कैद करना और मृत्युदण्ड देना, यह भी सभ्यताका चिह्न नहीं। इस दृष्टिसे गुप्त राजाओंका शासन-फाल भारतमें सबसे उत्तम और अनुकर- णीय काल हो चुका है और इस कोमलताके होते हुए भी देशका प्रबन्ध अत्युत्तम था क्योंकि चोनी पर्यटक सड़कों और मार्गों की घड़ी प्रशसा करता है। वह डाफुओं और लुटेरोंका उले पतक नहीं करता। यह केवल एक ही ऐसे दण्डका उल्लेख करता है जो हमें पाशविक प्रतीत होता है, अर्थात् जो लोग बार बार राज- विद्रोह या लूट मारके अपराधो ठहराये जाते थे उनका दायां हाथ काट दिया जाता था। राजकीय आय अधिकतर सरकारी भूमियोंकी उपजसे होती थी और राजकर्मचारियोंको नियत वेतन मिलता था।