पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३११

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1 बिहार और बंगालके नरेश सेनाके साथ उसने दुर्गपर अधिकार कर लिया। यहां जितने भी भिक्षु थे उनकी हत्या उसने ऐसे पूर्णरूपसे की कि अन्तको जब विजयी सेनापति मठके पुस्तकागारोंमें पहुंचा तो एक भी मनुष्य ऐसा शेप न रहा जो उसको यह बता सके कि ये पुस्तके किस विषयकी हैं। इसके अतिरिक उसने संख्यातीत धन लूटा । यौद्ध भिक्षु इस चोटसे ऐसे छिन्न भिन्न हुए कि उस एक ही आघातसे बिहार प्रान्तमें जो बौद्ध-धर्मका अन्तिम आश्रय. स्थान था, यह धर्म सर्वथा नष्ट हो गया । बहुतसे भिक्षु तिव्यत, नेपाल और दक्षिण भारतको भाग गये। जो भिक्षु तिव्यतमें गये उनकी सहायतासे महान् लामाने संस्कृत-पुस्तकोंके बहुतसे अनुवाद तिब्बती भाषामें कराये । उस समय तिब्यतम मुद्रण. कला ( Black prinung) चीनसे माकर प्रचलित हो चुकी थी। इसलिये संस्कृत पुस्तकोंके ये प्रचुर अनुवाद मुद्रित करके सुरक्षित किये गये। सेनवंशके अन्तिम राजा राय लक्ष्मणा राय लखमनियाका सेनके विषयमें यह प्रसिद्ध है कि उसने ८० पराजय । वर्षतक राज्य किया। यह कथन सत्य हो या न हो परन्तु यह प्रकट है कि लक्ष्मणसेन युड्ढा मनुष्य था और बहुत धर्मपरायण था। उसकी चदान्यता और न्यायशीलताकी कहानियाँ विश्वास्य ऐतिहासिकोंने लिखी हैं। भारतके सब राजा महाराजा उसका सम्मान करते थे और उसको देशका धार्मिक नेता मानते थे। उसकी राजधानी नदिया थी जो चिरकालसे हिन्दुओंकर विद्या-पीठ है। नदियामें शिक्षा पाने के लिये अब भी दूर.दूरसे पण्डित जाते हैं और वहांके स्नातकोंका बहुत गौरव होता है।