पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३२

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को सच्चे और विश्वास्य जातीय वृत्तान्तोंका शान कराया जाय तो वे बड़े होकर यथासम्भव अपने पूर्वजोंके चरण-चिह्नोंपर चलनेका यन करें। इसके अतिरिक्त वर्तमान अधःपतनके जो कारण हैं भविष्यमें ये उनसे दूर रहें, और उन कारणोंसे भी बचें जो उनमेंसे अपने जातीय गुणोंको दूर करनेवाले हैं। अँगरेजोंके राजत्वकालमें कई शताब्दियोंके पश्चात् आर्य जातिके यतीत इतिहासपर प्रकाश पड़ा है। इस प्रकाशके प्राप्त करानेमें सबसे प्रथम और सबसे अधिक काम यूरोपके विद्वानोंने किया है। अब भी अन्वेषणका अधिकांश कार्य उनके ही हाथमें है । यद्यपि कई भारतीय विद्वान् भी चिरकालंसे इसमें यथोचित भाग ले रहे हैं, तथापि अंगरेज विद्वान जिस उत्साहसे परिश्रम करते हैं वह अबतक भी भारतीय विद्वानों के उत्साह और परिश्रमसे बहुत अधिक है। भारतीय इतिहासका घह काल जो मुसलमानोंके आक्रमणोंके पहले हो चुका अभी अधिकांश अन्धकारमें ढका हुआ है । यद्यपि गत सौ वर्षों के समयमें बहुतसी बातें मालूम हो चुकी हैं जिनके विषयमें अब कुछ सन्देह शेष नहीं रहा, तो भी हम यह नहीं कह सकते कि इस कालका प्रमिक, विश्वास्य और पूर्ण इतिहास तैयार हो गया है । अगरेजीमें बहुतसी ऐसी उत्तम पुस्तकें विद्यमान हैं जिनमें विद्यार्थीको ये वृत्तान्त एक स्थानमें एकत्रित मिल सकते हैं। वह उनकी सहायतासे अधिक यन्येपण भी कर सकता है। वह उन पुस्तकोंके पाठका भी आनन्द ले सकता है जो उक्त कालके विविध भागोंके विषयमें भिन्न भिन्न विद्वानोंकी लेखनीसे निकाली और जिनमें सविस्तर व्याख्यायें लिखी हुई हैं। इन पुस्तकों- समूहमेंसे शायद सर्वोत्तम इतिहास हमारे विद्वान् देश-भाई गै रमेशचन्द्रदत्तकी रचना है। इसमें उस कालके वृत्त' ,