7 हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना २६६ सी लड़ाइयां लड़ी, प्रत्यक्षरुपसे किस्ता-कहानीसे अधिक महत्व नहीं रखती। इन पृष्ठोंमें मुसलमानोंके पहले के शासन- फालके भारत-इतिहासका संक्षिप्तसा दिग्दर्शन कराया गया है। परन्तु प्रत उद्देश्य यह रहा है कि भारतीय नवयुवकोंको मार- तीय सभ्यता, भारतीय विचार और भारतीय साहित्यकी कथा संक्षिप्तरूपसे सुना दी जावे। अच्छा नो यह होता कि यह कथा फेघल वर्णनतक ही परिमित रहती परन्तु ,कुछ कारणोंसे यह आवश्यकता जान पड़ती है कि हिन्द-सभ्यताको तुलना वर्तमान कालकी यूरोपीय सभ्यतासे की जाय, जिससे इस पुस्तकके पढ़नेवालोको दोनों सभ्यताओंके विषयमें सम्मति स्थिर करनेमें सुविधा हो। इस तुल नाकी आवश्यकता।। है फि 'क्षिप्त रीतिसे यह भी यह भी आवश्यक प्रतीत यता दिया जाय कि इस तुलना करनेकी क्यों आवश्यकता है, और तुलना करने का यह काम पाठकोंपर क्यों नहीं छोड़ा जा सकता ! बात यह है कि भारतके इतिहासमें भारतीयोंने पहली बार किसी दूसरी जातिसे वौद्धिक और आध्यात्मिक पराजय पाई है। याशा की जाती है कि यह पराजय स्थायी नहीं है। इसके पहले याहरके आक्रमणकारी भाते रहे और राजनीतिक परि- वर्तन करते रहे, परन्तु सयने हमारी सभ्यता, हमारे रहन-सहनके टङ्ग और हमारे सामाजिक जीवनके सामने सिर झुकाया। प्रत्येक आक्रमणकारी प्रतिने इसीमें अपना कल्याण, अपना प्राण और अपना गौरव समझा कि वह हमाग धर्म ग्रहण करके और हमारे समाजमें प्रविष्ट होकर अपने आपको भारतीय जातिका अङ्ग बनाये। प्राचीन आर्यों के भारतमें आनेके पश्चात् और मुसलमानोंके भाक्रमणफे पहले बहुत सी जातियां और
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