पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३४

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पढ़कर उनको अधिक जानकारीका चस्का पैदा हो जाय तो धे घड़े ग्रन्योंका अध्ययन कर सकते हैं, और अगरेजी भाषाका ज्ञान प्राप्त करके मूल माएडारोंकी खोज कर सकते हैं। मेरा विचार है कि इस विषयपर एक वड़ो पुस्तक लियूँ जिसमें सविस्तर विवाद लिपे हों, ताकि जो लोग अंगरेजी नहीं जानते और इतना अवकाश .और अवसर नहीं रखते कि उस शुद्ध भाषाका शान प्राप्त कर सकें वे भी अपनो ऐतिहासिक रुचिको पूरा कर सकें। यह छोटीसी पुस्तक उस बड़ी पुस्तककी अग्र- गामिनी है और मैं घड़े संकोचके साथ इसको जनताके सामने उपस्थित करता हूँ। मैं किसी भापाका पण्डित होनेकी प्रतिज्ञा नहीं करता। न में इतिहासके विस्तृत शानकी प्रतिज्ञा कर सकता है। उर्दूका मर्मज्ञ नहीं है और न किसी मर्मज्ञ अध्या- पकसे ही मैंने उर्दू लिपने और पढ़नेकी शिक्षा पाई है। ऐसी अवस्थामें में बड़े संकोचसे इस पुस्तफको प्रकाशित करता हूँ। विचार फेवल यही है कि शायद मेरी यह छोटीसी पुस्तक, जिसमें वृत्तान्तोंको इकट्ठा करने में बहुत परिश्रम और पोजसे काम लिया गया है, किसी मशमें उस अभावकी पूर्ति कर सके जिसका उल्लेप मैंने ऊपर किया है। में सहर्ष स्वीकार करता हूँ कि इस पुस्तकके बनानेमें सबसे अधिक सहायता मुझे घावु रमेशचन्द्रदत्तके इतिहाससे मिली है। मैंने इस पुस्तकसे पता पाकर मूल पुस्तकोंको भी पढ़ा और यहुतसे अन्य ऐतिहासिक ग्रन्योंका भी अध्ययन किया। परन्तु फिर भी जो सहायता मुझको उस पुस्तकसे मिली वह किसी दूसरी एक पुस्तकसे नहीं मिली। इसलिये मैं सबसे अधिक विद्वान् वाचू महाशयका आभारी हूँ । किन्तु मैंने दूसरी ऐतिहासिक पुस्तकोंसे भी सहायता ली है। उनके नाम मागे देता हूँ :- $