पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३६

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दिया गया है। इसमें कतिपय प्राचीन नामोंके वर्तमान ठिकाने लिखे गये हैं ताकि विद्यार्थी इतिहासके विषयको भली भांति समझ सके। दूसरे पण्डमें आर्योंके मूल निवास-स्थानपर बहुत संक्षिप्त सा विवाद दिया गया है। शेष पुस्तकको तीन भागोंमें विभक्त किया गया है। उनमें भिन्न भिन्न परिच्छेद और विषय हैं। अर्थात्, तीसरा खण्ड (क) वैदिक काल । चौथा खण्ड (प) यौद्ध काल । पांचवा खण्ड (ग) पौराणिक काल । मुझे दृढ़ विश्वास है कि इस प्रान्तके अध्यापक मेरी इस तुच्छ कृतिको रुपादपिसे देखेंगे, और अपने विद्यार्थियोंकी आवश्यकता अनुसार इसमें जो कुछ घटाना पढ़ाना चाहे उससे मुझे सूचित करेंगे ताकि में अगले संस्करणमें उनकी विद्वत्ता- पूर्ण और उचित समालोचनासे लाभ उठा सकूँ। अोबर सन् १८६८ ई. } लाजपत राय।