पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३७७

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हिन्दू और यूरोपीय सम्यताकी तुलना मगस्थनीज़ सबके सब हिन्दुओंको सत्यवादिता और सत्याचरण- की यहुत प्रवल साक्षी देते हैं। ये हिन्दू अदालतोंके न्यायकी भी पड़ो प्रशंसा करते हैं । इसका समर्थन मारम्भिककालके मुसल- मान इतिहास लेखकों और पर्यटकोंके वृत्तान्तोंसे भी होता है। इस विषयमें हम निस्संकोच होकर कह सकते हैं दण्ड। कि यूरोपीय सभ्यताने मनुष्यताकी ओर यहुत उन्नति की है। हिन्दू फालके दएड हमें पाशविक देख पड़ते हैं। लोगोंके हाथ पांव, नाक-कान काट लेना या उनको जीते जी आगमें जला देना या जलमें डुबो देना या पर्वतपरसे फेंक देना या उनके शरीरको गरम गरम पत्थरों या लकड़ियोंसे घायल करना, ये दण्ड किसी सभ्य जातिके लिये गौरवका कारण नहीं हो सकते । दएडोंके सम्बंध कदाचित उस समयके संसारमें सब फहीं ऐसी ही अवस्था थी। यूरोप और अमरीकामें भी लगभग ईसाफी अठारहवीं शताब्दीतक ऐसा ही रहा। सन् १७८६ ई०में अमरीकाके संयुक्त राज्यमें एक लड़कीको टोपी और जूता चुरानेके अपराधमें फांसी दी गई। इंग्लेण्डमें जार्ज तृतीयके काल. तक यातनाकी रीति प्रचलित थी। देखो श्री० चेल्सफा इतिहास, द्वितीय खंड, पृष्ठ २३८ । इसके अतिरिक्त यूरोपमें जीता जलाने. की प्रथा भी थी। धर्मसे इन्कार करनेवालोंको नाना प्रकारको यातनायें दी जाती थीं। परन्तु उन्नीसवीं शताब्दीमें यूरोपने इस विषयमें बहुत उन्नति की है। हमारी सम्मतिमें अय भी प्राण-दएड या दीर्घ फारावासोंका दण्ड देना या फोढ़े लगाना एक पाश. विफ फर्म या चेष्टा है। हम आशा करते हैं कि समय उन्नति करता करता दएडोंके विषयमें इससे भी अधिक उन्नति करेगा और मनुष्यताके नियमोंपर चलनेमें पग आगे बढ़ायेगा। इस विषयमें यूरोपीय समाज-शाली और अमरीफन संस्कारय यहुत