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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/३७९

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हिन्दू और यूरोपीय सभ्यताकी तुलना अधिक श्रेष्ठ है और न स्त्रियां पुरुपोंसे अधिक श्रेष्ठ हैं। छुटाई बड़ाईका कोई प्रश्न नहीं है। प्रकृतिने स्त्रियोंको विशेष प्रयोजनों- के लिये बनाया है और पुरुषोंको अन्य प्रयोजनोंके लिये। कुछ गुण और इन्द्रियां दोनोंमें समान हैं और कुछ भिन्न भिन्न । कुछ बातोंमें स्त्रियां पुरुषोंकी अपेक्षा अधिक सम्मान और आदरफी पानी है और कुछ दुसरी बातोंमें पुरुषोंकी योग्यता अधिक है। उदाहरणार्थ प्रेम, सहानुभूति, सेवा, और त्याग जितना स्त्री जातिमें पाया जाता है उतना पुरुषोंमें नहीं। स्त्रियां पुरुषोंकी अपेक्षा अधिक संयमी है और उनमें कष्ट सहन करनेकी शक्ति भी अधिक है। पुरुष स्त्रियों की अपेक्षा अधिक परिश्रमी, अधिक धीर हैं, अधिक कठिन कार्य कर सकते हैं। स्त्रियां अपनी प्रकृतिको हानि पहुंचाये बिना उतना कष्ट नहीं उठा सकतीं। यूरोप और अमरीकाने स्त्रियोंके जीवनके प्रत्येक अङ्गमें स्वतंत्रताका अधि. कार-पत्र दे दिया है और उसका परिणाम यह हो रहा है कि जहां स्त्रियोंके अधिकार अधिक हो गये हैं वहां उनपर उत्तर.' दायित्व भी बढ़ गये हैं। जहां स्त्रियोंको यह अधिकार प्राप्त है कि वे भाजीविका कमानेके मिन्न भिन्न साधनोंमें स्वतंत्र हों यहां आजीविका कमानेका उत्तरदायित्व भी उगपर इतना बढ़ गया है कि सहस्रों और लाखों स्त्रियोंको अपने विशेष नारि-धम्मा- को पूरा करनेका न अवकाश है और न रुवि । जहां हमें एशियामें स्त्रियोंकी आर्थिक दासताको देखकर शोक होता है यहां यूरोपमें उनकी जिम्मेदारी देखफर भी दुःख होता है। लाखों स्त्रियां यूरोप और अमरीकाकी दूकानोंमें लगभग आठ घंटे खड़ी रहती हैं। कुछ स्त्रियों को तो इससे भी अधिक ध्रम करना पड़ता है। इस घोर शारीरिक श्रमका परिणाम यह होता है कि स्त्रियां अपने मातृ-धर्मकी उपेक्षा करती हैं और कुछ अवस्याओंमें उसके २२