हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ३८५ । है किसी प्रकारका हस्तक्षेप करनेको आशा न थी (सिवा उनके जिनका प्रत्यक्ष रूपले सम्पन्ध हो) । मनुस्मृतिमें अठारह प्रकार- के अभियोगोंका वर्णन है। उनका व्योरा यहां देनेकी आवश्य- कता नहीं। दीवानी अभियोगोंका जो विधान बताया गया है। वह साधारणतया यहुन अंशतक आजकल के प्रचलित दीवानी जायतेसे मिलता-जुलता है। उममें अरजीदाया, जवायदावा, साक्षीकी सुनवाई, वाद-विवाद और निर्णयके सम्बन्धमें सविस्तर उपदेश दिये गये हैं। नारद-स्मृतिमें यह भी लिखा है कि यदि कोई प्रतिवादी भाग जानेकी चेष्टा करे तो वादीको उसे गिरफ्तार करके अदा- लतमें पेश करनेका अधिकार था । परन्तु आगे लिखे व्यक्तियों- को गिरफ्तार नहीं किया जाता। (१) दुलहा ।, (२) रोगी। (३) जो यज्ञमें लगा हुवा हो। (e) चिपत्ति प्रस्त। (५) किसी दूसरे अभियोगका दोषी । (६) राज्यका पदाधिकारी। (७) गदेरिया। (८) पिकार जो खेतीके काममें रत हो। (B) कारीगर जो अपने व्यवसायमें निमग्न हो (१०)अप्राप्त वयस्क। (११) दूत। (१२) जो व्यक्ति दान करने में लगा हो। (१३) जो व्यक्ति किसी प्रतिज्ञाको पूर्ण कर रहा हो। (१४) जो कठिनाइयों में फंसा दुभा हो । २५
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