हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ३८७ योगोंमें मृत्यु-दण्ड न दिया जाता था, यद्यपि धर्मशास्त्रोंमें मृत्यु-दण्डका उल्लेख है। न्यायाधीशोंको न्याय किस प्रकार करना चाहिये, इस विषय. मे' हिन्दू-धर्म-शास्त्रोंमे बहुतसे सविस्तर उपदेशे लिखे हैं। उनमें अत्याचार और अन्याय करनेकी दशामें अधिकारियों को दण्डनीय ठहराया गया है। चाणक्यने यह भी लिखा है कि यदि कोई अदालतका अधिकारी किसी मुकद्दमेवालेको धमकाये या चिढ़ाये या अनुचित रूपसे उसे बोलनेसे रोके, या उसे भदा- लतसे याहर जानेपर विवश करे, तो उसे अर्थ-दण्डसे दण्डित किया जावे। इसी प्रकार यदि कोई अदालतका अधिकारी किसी मुकदमेवालेका अपमान करे अथवा प्रश्न पूछनेमे अनुचित रीति- का अवलम्बन करे, अथवा किसी साक्षीको पढ़ावे, अथवा अनुचित रूपसे किसी मुकदमेके सुनने में विलम्ब करे अथवा इसी प्रकार कोई और अनुचित चेष्टा करे, तो अर्थदण्डके अतिरिक्त उसको अपने पदसे पृथक् कर दिया जावे। इसी प्रकार अर्थ-शास्त्रमें उन जजोंके लिये दण्ड नियत है जो मोह या लालच या भयसे कानूनके विरुद्ध निर्णय दें। जहां जजोंपर इस प्रकारकी सस्तियां लगाई गई थी वहां इसके साथ ही उनको एग्जेक्टिव गवर्नमेएटफे अनुचित प्रभावसे बचाया गया था। मगस्थनीज़ने अपने भ्रमण-वृत्तान्तमें लिया है कि इस देशमें चोरी बहुत ही कम होती है। उनके नियमों और प्रतिक्षामोको सरलता इस यातसे प्रकट होती है कि अमियोग बहुत कम होते हैं। रहन या निक्षेपोंके सम्बन्धमें कोई अभियोग नहीं होते और न उनको छाप लगाने या साक्षी करानेको आवश्यकता पड़ती
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