हिन्दुओंकी राजनीतिक पद्धति ३७ थे। वे अतीव कठिन से कठिन चट्टानमें से काटकर बहुत हो सुन्दर, सीधे और बड़े बड़े स्तम्भ बनाते और सुसजित कमरे खोद देते थे। आलेख्य वास्तु-विद्याका एक आवश्यक अङ्ग समझा जाता था। समस्त महत्तायुक्त इमारतोंमें आलेख्य और चित्र बड़ी कारीगरीसे बनाये जाते थे। फर्गुसनने बौद्ध इमारतों- को पांच प्रकारोंमें बांटा है। अर्थात् - पहला-स्तम्भ और लारें, जिनके विषयमें कहा गया है कि वे भारतीय कलाकी अतीव मौलिक और अतीव सुन्दर उपज हैं। दूसरा-स्तूप, अर्थात् ऐसे भवन जो महात्मा धुद्धके शरीरके किसी भागपर या किसी दूसरे चौद्ध साधु या महात्माको स्मृति- में समाधि-मन्दिरके रूपमें बनाये जाते थे अथवा किसी पवित्र स्थानपर उस स्थानकी स्मृतिके रूपमें निर्मित किये जाते थे। तीसरा-कटहरा या जङ्गला, जिनपर अत्युत्कृष्ट सुन्दर काम होता था। चौथा-चैत्य या सभा-भवन ( असम्बली हाल ) जो बौद्ध धर्मके मन्दिर गिने जाते थे। पांववा-विहार, संधाराम या.मठ, अर्थात् जहां भिक्षु लोग निवास करते और शिक्षा देते थे। प्रथम प्रकारके भवनों में दिल्ली और मागरेकी लाटें अधिक विख्यात हैं। इनके अतिरिक्त तिर्तुत, संकाश ( मथुरा और कनौजके बीच ), कारली (वम्बई और पूनाके बीच ) और ईरानकी लाटें भी बहुत कारीगरीकी हैं। तिर्तुतकी लाटके ऊपर एक सिंहकी मूर्ति यनाई हुई है और फारलोकी लाटपर चार सिंहोंका आकार है। दिल्लीकी लोहेकी लाट अतीव अद्भुत लाट है । यह लाट भूमिसे २२ फुट अनी है। इसका व्यास नीवेसे १६ च और ऊपरसे १२१च है।
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