पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४७

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२० भारतवर्पफा इतिहास हासिक कालके बहुत पहलेफी लिखी हुई हैं। ये पुस्तके हमें उसं फालके हिन्दू आाँकी सभ्यता और नागरिकताका सञ्चा चित्र अतीव स्पष्ट रीतिसे दिखाती हैं। चीनके सिवा भूमण्डलमें कोई भी दूसरी जाति ऐसी नहीं जो यह प्रतिज्ञा कर सकती हो कि इतनी प्राचीन और इतनी उच्च कोटिकी, पुस्तकें उनके यहां मौजूद हैं। चीनियोंके पास दो सहस्रसे पच्चीस सौ वर्ष ईसाके पूर्वतककी पुस्तकें मौजूद हैं। परन्तु मैं यह माननेके लिये तैयार नहीं कि उन पुस्तकों में कोई पुस्तफ इस कोटिकी है जैसे कि हिन्दुओंके उपनिषद या घेद हैं। इस दृष्टिसे हिन्दुओंको प्राचीन पुस्तकें ऐतिहासिक फालके पहलेके वृत्तान्तोंको जाननेके लिये अतीव मूल्यवान् और आब- श्यक है। मानुपी उन्नति और सभ्यताके इतिहासका ये माव: श्यक, बहुमूल्य और प्राचीन अंश हैं। भूमण्डलकी जातियों में हिन्दू हो एक ऐसी जाति है जो साभिमान यह कह सकती है कि उन्होंने आजतक अपनी सभ्यताको सुखलित और शुद्ध रपखा है । मैं यह नहीं कहता कि ऐतिहासिक फालमें हिन्दू सभ्यतापर वाह्य सभ्यताका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। परन्तु मैं यह कहनेके लिये तैयार हूं कि धर्म और नागरिकता दोनोंमें हिन्दुओंने बाहरसे कुछ नहीं लिया । उनको प्राचीन सभ्यता और प्राचीन नागरिकता अपने ही:मन और मस्तिष्ककी उपज हैं। पश्चिममें ईरानियोंने, यूनानियोंने और भरवोंने बहुत कुछ हिन्दू-सभ्यता और हिन्दू-तत्त्वज्ञानसे सीखा। पूर्व में चीन, माचीन (ब्रह्मा, सियाम, अनाम, कोरिया, तिन्यत) और जापान तो स्पष्ट रूपसे भारतके शिष्य रहे। परन्तु कोई यह नहीं कह सकता कि भारतकी वास्तविक सभ्यताकी कोई. आधारशिला और उनकी नागरिकताको रीतिका कोई नियम याहरसे आया।