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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४७७

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४३४ भारतवर्षका इतिहास जो नष्ट हो गये हैं। राजकरोंका वर्णन करते हुए पृष्ठ २४५ पर लिखा है कि आगे लिखे व्यक्ति करसे मुक्त थे:- विद्वान् ब्राह्मण, राजकीय नौकर, वे लोग जिनका कोई आश्रयदाता न हो, साधु, वञ्च, विद्यार्थी, विधवार्य जो वापस पिताके घर चली गई हों, कुमारी कन्यायें, नौकरोंकी स्त्रियाँ और प्रदत्ता (जिसका अर्थ अध्यापक महाशयने चे कन्यायें लिखा है जिनकी सगाई हो चुकी हो)। युद्ध-नीति। युद्धके नियमोंके सम्बन्धमे आपस्तम्बकेप्रमाण, से यह लिखा है कि राजाको विषाक्त वाणोंका उपयोग करनेका निषेध था और उसे आदेश था कि वह शर- णागतों या निरुपाय लोगोंपर आक्रमण न करे, और (बौद्धायनके प्रमाणसे ) उनपर भी आघात न करे जो लड़ाईसे हाथ उठा चुके हों या जो अपनेको गऊ कहकर शरण ढूंढ़ते हों ( पृ० '२४७)। न्यायके सम्बन्धमें गौतमके धर्म-शास्त्रमें न्यायके नियम | लिखा है कि "न्याय वेदों, धर्म-शास्त्रों, अङ्गों, 'पुराणों और उपवेदोंके अनुसार होना चाहिये।” (पृ०२४५) ! इसी शास्त्रों उसकी व्याख्या इस प्रकार की गई है कि अभियोगों और झगड़ों के निर्णयोंमें आगे लिखे कानूनोंका पालन किया जायगा :-“जाति-नियम, फुल-नियम, और प्रान्तकी ऐसी प्रथायें जो वेदोंके विरुद्ध न हों। कृपकों, व्यापारियों, गड़ेरियों, आसामी-वणिज करनेवालों, शिल्पियों आदि मिन्न भिन्न श्रेणियोंको अधिकार था कि अपने लिये आप नियम यना लें।" स्त्रियोंके सम्बन्धमें आशायें। सूत्रों और धर्म-सूत्रोंमें त्रियों के सम्बन्धमें मिन, मिस झायें और