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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/४९

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1 २२ भारतवर्षको इतिहास असभ्य और जङ्गली थे अधिकांशमें भ्रमात्मक और निस्सार है। उस समय भी भारतमें सभ्यता और उन्नतिक भिन्न भिन्न परत मौजूद थे। परन्तु तत्कालीन सभ्यताके विपयमें कोई पर्याप्त और विश्वास्य ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता। इसलिये निश्चय रूपसे उस कालकी अवस्थापर कोई टीका टिप्पणी करना असम्भव है । भारतकी जातियां धर्तमान भारतीय जनता जगत्की सभी बड़ी घड़ी जातियोंका मिश्रण है। उसका बड़ा भाग 'निस्सन्देह आर्यवंशसे है। परन्तु उसमें द्रविड़, तातारी तथा अरय जाति और कुछ अंश उस जातिके भी सम्मिलित हैं जिस- को नीग्रो या हब्शी कहा जाता है। उत्तरीय भारतके विशेषतः पंजाय, संयुक्त प्रान्त, राजपूताना, गुजरात, बङ्गाल और यिहार- के अधिवासी अधिकतर आर्यवंशके हैं। उत्तर-पश्चिममें कुछ अंश अरव और तातारी मूलके हैं। उत्तर-पूर्व में कुछ रक्त मङ्गो- लियन जातिका है। दक्षिणमें अधिकतर भाग द्रविड़-जातिका है और मालावार सागर-तटपर एक विशेष संख्या अरबी वंशके मुसलमानोंकी है। मध्यभारत तथा दक्षिण में और विन्ध्याचलके भागोंमें और नीलगिरी पर्वतके प्रदेशमें घे जातियां वसती जिनको भारतके आदिमनिवासी कहा जाता है, जैसा कि भील और गोएंड मादि । मार्यो के आनेके पूर्व उत्तरीय भारतकी भारतकी भापायें पपा भाषा थी, यह कोई नहीं बता सकता। मदरास प्रान्तको भाषायें द्रविड़ स्रोतसे हैं । सम्भव है कि आर्योंके आनेके समय उस स्रोतकी भापाय उत्तरीय भारतमें भी प्रचलित हों, परंतु यदि ऐसा था तो हिन्दू इस विषयपर परिमिष्ठम एक नोट देखो ।