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पृष्ठ:भारतवर्ष का इतिहास भाग 1.djvu/५७

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- ३० भारतवर्षका इतिहास जातियोंको उनकी अयोग्यता और असमर्थताका विश्वास करा दें। शासक और शासितका सम्बन्ध कायम रखनेके लिये केवल तलवारकी शक्ति ही पर्याप्त नहीं, केवल मानसिक योग्यता ही की मावश्यकता नहीं, केवल उच्चकोटिका चरित्र ही नहीं चाहिये वरन् यह आवश्यक है कि शासककी मानसिक अवस्था (Psychology) अधिराजक (Imperial) हो और शासितकी दासप्रकृति (Slave mentality) हो। गत महायुद्ध में यह यात भली भांति स्पष्ट हो गई कि किस प्रकार संसारकी बड़ी बड़ी जातियोंने, जिनमें अगरेज़, जर्मन, फ्रांसीस और अमरीकन सम्मिलित थे, अपने अपने इतिहासोंको ऐसी दृष्टिसे क्रमबद्ध किया जिससे उनके बचोंमें उस प्रकारको मानसिक और हार्दिक अवस्था उत्पन्न हो जो उनको अपनी जातीय सफलताके लिये मावश्यक थी अमरीकन स्कूलोंमें सन् १९१८ ई. तक ऐसे इतिहास पढ़ाये जाते थे जिनमें ब्रिटिश जातिके विरुद्ध बहुत कुछ विष उगला हुआ था और जिनमें उन अत्याचारोंका बहुत उल्लेख था जो लिखनेवालोंके विचारमें ब्रिटिश जातिने अमरी. कन औपनिवेशिकोंपर अमरीकन, स्वतंत्रताके पहले किये थे। उसी समयकी घटनाओंका वर्णन करते हुए उन इतिहास: पुस्तकोंमें जो घरतानिया द्वीपसमूहके स्कूलोंमें पढ़ाई जाती थीं अमरीकन देश-भक्कोंके विरुद्ध पर्याप्त विष उगला हुआ था। सारांश यह कि एक ही घटनाको दोनों जातियोंने अपने पोंके सामने भिन्न २रूपमें उपस्थित किया। सन् १९१८ ई० में जब अगरेजों और अमरीकनोंके बीच जर्मनीके विरुद्ध एकता हो गई तो दोनों जातियोंको इस आय: श्यकताका अनुभव हुआ कि अपने अपने देशोंकी पाठ्य पुस्तकों +