पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१२६

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प्राचीनलिपिमाला. चंतर नहीं है (देखो, 'तका चौथा रूप, 'द' का दूसरा रूप और 'न' का तीसरा रूप ). कहीं कहीं 'म' के नीचे बाड़ी लकीर या बिंदी और 'ह' के नीचे भी बिंदी लगी मिलती है. के साथ के रेफ को अक्षर के नीचे लगाया है परंतु उसको ग्रंथि का सा रूप देकर संयुकाचर में मानेवाले दूसरे ‘र से भिन्न बतलाने का यत्न पाया जाता है और शक, पार्थिचन भादि के सिकों में यह भेद अधिक स्पष्ट किया हुआ मिलता है ( देखो ). शक, पार्पियन् मादि के सिकों से जो मुख्य मुख्य अक्षर ही लिये गये हैं उनमें कई अक्षरों की लकीरों के प्रारंभ या जांत में ग्रंथियां लगाई हैं वे, संभव है कि, अक्षरों में सुंदरता लाने के लिये ही हों. कपर की दाहिनी भोर की लकीर नीचे की ओर नहीं किंतु ऊपर की तरफ बढ़ाई है. विपिपन्न ६६वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- महरजस भ्रमिकस इलियक्रेयस. महरजस भ्रमिकस जयधरस अबियस. महरजस पतरस मेनट्रस. महरजम अपरिहतस फिलसिनस. महरजस पतरस जयंतस हिपुस्खतस. महरजस पतरम हेरमयस. रजतिरजस महतस मोघस. महरजस रबरबस महतस अयस. महरजस रजरजस महतस अथिलिषस. लिपिपत्र ६७ वा. यह लिपिपत्र चत्रप राजुल के समय के मथुरा से मिले हुए सिंहाकृतिवाले स्तंमसिरे के बेलों, तक्षशिला से मिले हुए क्षत्रप पनिक के ताम्रलेख और वहीं से मिले हुए एक पत्थर के पानपर के लेख' से तय्यार किया गया है. इस लिपिपत्र के अक्षरों में 3 की मात्रा का रूप अंषि बनाया है और न नया 'ण' में बहुधा स्पष्ट अंतर नहीं पाया जाता. मथुरा के लेखों में कहीं कहीं 'त', 'न नया 'र' में भी स्पष्ट अंतर नहीं है. लिपिपल ६७वें की मूल पंक्तियों का नागरी अक्षरांतर- सिहिसेन सिहरछितेन भतरेहि नखशिलर अयं बुवो प्र- तिबवितो सवबुधन पुयर' 'नखशिलये नगरे उत- रेख प्रच देशो म मम पत्र "शे पतिको प्रतिवित । ये मूल पंक्तियां प्रीक भादि राजाओं के सिक्कों पर के लखों से है . ऍजि , पृष्ठ १३६ और १४८ के बीच के सेटों से. • ऐं.. जि. ४, पृष्ठ ४६ के पास के मंट से. इस ताम्रलेख में अक्षर रेखारूप में नहीं खुदे है किंतु विदियों से बनाये हैं. राजपूनाने में ई. स. की १४ वीं शताब्दी के बाद के कुछ ताम्रपत्र ऐसे ही विदियो से पुरे हुए भी देखने मै माये जिनमें से सब से पिछला २० वर्ष पहिले का है. तांबे और पीतल के बरतनों पर उनके मालिकों के नाम इसी तरह बिंदियों से खुदे हुए भी देखने आने है. ताम्रपत्रादि बहुधा सुनार या लुहार खोदते हैं. उनमें जो अच्छे कारीगर होते हैं तो जैसे अक्षर स्याही से लिखे होते हैं वैसे ही खोद लेते हैं परंतु जो अच्छे कारीगर नहीं होते या प्रामीण होते हैं ये ही बहुधा स्याही से खिले हुए अक्षरों पर विदियां बना देते हैं यह त्रुटि खोदनेवाले की कारीगरी की ही है. • ' ईजि ८, पृष्ठ २६६ के पास के प्लेट से. . 'सिहिखेन' से लगाकर 'पुयर' तक के लेख में मीन बार 'ण' या 'म' माया है जिसको दोनों ही तर पड़ सकते हैं, क्योंकि उस समय के प्रासपास के खरोष्ठी लिपि के कितने एक लेखों में 'म' और 'ए'में स्पष्ट मेव नहीं पाया जाता. + यहां तक का लेख तक्षशिला के पर के पात्र से है. यहां से लगाकर अंत तक का लेख तक्षशिला से मिले हुए तानसे लिया है। .