१९-बाझो और उसम निकलो हुई लिपियों के अंक. (लिपिपत्र ७१ से ७६ के उत्तगद के प्रथम खंड तक ) प्राचीन शिलालेन्वों, दानपत्रों, सिक्कों तथा हस्तलिम्बित पुस्तकों के देम्वने मे पाया जाता है कि लिपियों की तरह प्राचीन और अर्वाचीन अंकों में भी अंतर है. यह अंतर केवल उनकी प्रकृति में ही नहीं किंतु अंकों के लिखने की रीति में भी है. वर्तमान समय में जैसे १ से हतक अंक और शून्य इन १० विही से अंकविद्या का संपूर्ण व्यवहार चलता है वैसे प्राचीन काल में नहीं था. उस समय शुन्य का व्यवहार ही न था और दहाइयों, मैंकड़े, हजार आदि के लिये भी अलग चिथे. अंकों के संबंध में इम शैली को 'प्राचीन शैली और जिसमें शून्य का व्यवहार है उसको 'नवीन शैली' कहेंगे. प्राचीन शली के अंक प्राचीन शैली में १ मे ह तक के अंकों के चिक१०, २०, ३०, ४०, ५०, ६०.७०, ८० और १० इन ६ दहाइयों के लिये ६ अलग चिक; और १०० तथा १००० के लिये एक एक अलग चिक नियत था ( देग्वो, लिपिपत्र ७१ मे ७५ के पूर्वार्द्ध के प्रथम ग्वंड तक में). इन २० चिहां से REERE नक की संख्या लिग्बी जा सकती थी लाग्य, करोड़, अरब आदि के लिये जो चिक थे उनका पता अब तक नहीं लगा क्योंकि शिलालेग्ब अथवा दानपत्रों में लाग्य' या उसके आगे का कोई चिझ नहीं मिला. इन अंकों के लिग्वने का क्रम १ मे तक तो वमा ही था जैसा कि अब है १. के लिये नवीन शैली के अंकों की नाई ? और नहीं किंतु एक नियत चिह ही लिग्वा जाता था; ऐसे ही २०, ३०, ४०, ५०, ६०. ७०,८०,१०,१०० और १००० के लिये भी अपना अपना चिक मात्र लिस्वा जाता था (देन्बो, लिपिपत्र ७१ से ७५ के पृवार्द्ध के प्रथम ग्वंड तक में) ११ से १६ तक लिखने का क्रम ऐसा था कि पहिले दहाई का अंक लिग्व कर उसके आगे इकाई का अंक रक्ग्वा जाना था, जैसे कि १५ के लिये १० का चिफ लिम्व उसके आगे ५; ३३ के लिये ३० और ३; 6 के लिये ६० तथा :, इत्यादि ( देवो, लिपिपत्र ७५ में मिश्र अंक). प्रमिव पुरातत्त्ववेत्ता डॉ सर मॉरल स्टाइन ने अगाध परिश्रम के साथ तुर्कस्तान में जो अमूल्य प्राचीन सामग्री प्राप्त की है उसमें कुछ खग्दे पंस भी है जिन पर भारतवर्ष की गुमलिपि से निकली हुई तुर्कस्तान की ई म. की छठी शताब्दी के आसपास की आर्य लिपि में स्वर, व्यंजन स्वरी की १२ मात्राओ (ऋऋ और ल ल को छोड़ कर) की बारखडी (द्वादशाक्षरी) तथा किसी में प्राचीन शली के अंक भी दिय हुए है (ज रॉ ए सोई.स १६११, पृ ४५२ और ४५८ के बीच के प्लट । स ४ तक) एक स्वर में १ से १००० तक के वहां के प्रचलिन प्राचीन शैली के चिझा के पीछे दो ओर चित्र ★ ऐसे है (ज. रॉ ए. सी, ई स १९१९ पृ ४५५) जिनको प्रसिद्ध विद्वान डॉ होर्नले ने क्रमश १०००० और १००००० के चिक माना है. परंतु हमको उन चिका को १०००० और १०१००० के सूचक मानने में शंका की है. संभव है कि इनमे से पहिला चिक १००००० का सूचक हो और दूसरा कंवल समाप्ति (विराम) का चित्र हो उसको अंकसूचक चित्र मानना संदिग्ध ही है
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