पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/१६५

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वर्तमान लिपियों की उत्पत्ति घ न कर थाकी का ही किया जायगा. अ ची. तीमरे से बना (याई और का अधवृत्त सा अंश मूल अक्षर से मिल जारे से) द. १८; ती. २४: चौ. तीसरे से बना ( ऊपर की दोनों बिंदियों को चलनी कलम से लिम्बन में), पां. ३१ ( अथर्ववेद ) ई प. १० (ई से मिलना हुआ); द १६ (आसीरगढ़ की मुद्रा). ती. ३० ( बैजनाथ की प्रशस्ति) नागरी के समान ए ती २%, चौ ३१ ( अथर्ववद ). ओ प. १, दृ... नी दुमर का रूपांतर चौ. १७ ( देवो. 'औ में); पां चौथे का नीच का अंश ऊपर की ओर अधिक बढ़ जाने से बना क पां .. स्त्र चौ २८ ग नागरी के समान ती दृमरे में बना कु दू पहिले मे बना य नी. ची २६ ज ती ८, चौ २६ भ चौ. नीमर मे बना, पां ३१ (शाकुंतल ). प्र ती दम से अना, ची तीमर को चलती कलम में लिम्बन मे नीचे गांट बन गई. र ती. २१ ( दुर्गगण का लम्ब) ट मूल रूप में बना रहा. ड जैन शैली की नागरी के 'ड' के समान ढ दृ. ६ ( उणीपविजयधारणा), नी. ३० ( सामवर्मन का दानपत्र ). ची ९६. ८.ची. ध चौ ३१. द पां१८ दु:नी. १६ न नागरी के ममान ( प्रारंभ की ग्रंथि को छोड़ कर ) पनागर्ग के समान. फ द ३१ (शाकुंतल ). व नागरीक ममान. म नागरी के ममान (मिररहित) य, र, ल, व चारों नागरी के समान, श गौ तीमर से बना प नागरी के समान स चौ. नीमर से बना. हती. दृमर में बना. वर्तमान शारदा लिपि के अक्षर अपने प्राचीन रूपों में नागरी की अपेक्षा अधिक मिलते हुए हैं और उनमें पूरे स्वर वर्ण उनके प्राचीन चिहा मे ही यने हैं ग न दृ.ती. लिगिपत्रयां इम लिपिपत्र में बंगला और कनड़ी लिपियों की उत्पत्ति यतलाई गई है. यंगला ािर की उत्पति बंगला लिपि प्राचीन नागरी की पुत्री डम लिये उमकी उत्पत्ति में दियं हुए प्रत्येक अक्षर के भिन्न भिन्न रूपों में से कितने एक नागरी के उक्त पां से मिलने हैं अत एव उनको होड़ कर बाकी का ही विवेचन किया जायगा और जो अक्षा नागरी के ममान हैं वा जिनके वर्तमान रूप के पूर्व के सब रूप नागरी की उत्पत्ति में बनलाये हुए म्पा के सदृश हैं उनको भी नागरी के समान कहेंग. अ-दक्षिणी शैली की नागरी के समान ( मध्य की आड़ी लकीर मिरठी) इ पां. जैन शैली से उ. नागरी के समान. ए चौ ३२ ( देवपारा का लेख) ओ चौ.१८. क--पां. चौथे से पना.