१६० प्राचीनलिपिमाला. जाता है. ऐसे १२ चांद्र मास का एक चांद्र वर्ष कहलाता है. चांद्र वर्ष ३५४ दिन, २२ घड़ी, १ पक्ष और २४ विपल के करीब होता है. हिंदुओं के पंचांगों में मास, पक्ष, तिथि आदि चांद्र मान से ही हैं. चांद्र वर्ष सौर वर्ष से १० दिन, ५३ घड़ी, ३० पक और ६ विक्ल छोटा होता है. सौर मान और चांद्र मान में करीब ३२ महीनों में १ महीने का अंतर पड़ जाता है. हिंदुमों के यहां शुद्ध चांद्र वर्ष नहीं किंतु चांदसौर है और चांद्र मासों नया ऋतुओं का संबंध बना रखने तथा चांद्र को सौर मान से मिलाने के लिये ही जिस मांद्र मास में कोई संक्रांति न हो उसको अधिक (मल) मांस और जिस चांद्र मास में दो संक्रांति हों उसको क्षय मास मानने की रीति निकाली है. हिंदूमात्र के श्राद्ध, वन मादि धर्म कार्य तिथियों के हिसाब से ही होते हैं इस लिये बंगाल मादि में जहां जहां सौर वर्ष का प्रचार है वहां भी धर्मकार्यों के लिये चांद्र मान की तिथियों मादि का व्यवहार करना ही पड़ता है. इसीसे वहां के पंचांगों में सौर दिनों के साथ चांद्र मास, पक्ष, तिथियां मादि भी लिखी रहती हैं. २६-हिजरी सन्. हिजरी सन् का प्रारंभ मुसल्मान धर्म के प्रवर्तक पैगंबर मुहम्मद साहब के मक्के से भाग कर मदीने को कूच करने के दिन से माना जाता है. अरबी में हिजर धातु का अर्थ 'अलग होना', 'छोड़ना' आदि है इसी लिये इस सन् को हिजरी सन् कहते हैं. प्रारंभ से ही हम सन् का प्रचार नहीं हुआ किंतु मुसल्मान होनेवालों में पहिले पैगंबर के कामों के नामों से वर्ष बनलाये जाते थे जैसे कि पहिले वर्ष को 'यजन अर्थात् 'आज्ञा' (मक्के से मदीना जाने की) का वर्ष, दुमरे को हुक्म का वर्ष (उम वर्ष में मुमल्मान न होनेवालों से लड़ने का हुक्म होना माना जाता है ) आदि. लीफा उमर (ई. म. ६३४ से ६४४ तक ) के समय यमन के हाकिम अवमूसा प्रशश्ररी ने खलीफा को अर्जी भेजी कि दरगाह मे ( श्रीमान् के यहां से ) शाबान महीने की लिग्बी हुई लिम्बावटें भाई हैं परंतु उनसे यह मालूम नहीं होता कि कौनसा ( किम वर्ष का ) शाबान है ? इम पर खलीफा ने कोई सन् नियत करने के लिये विद्वानों की संमति ली और अंत में यह निश्चय हुआ कि पैगंधर के मका छोड़ने के समय से ( अर्थात् तारीग्ब १५ जुलाई ई स ६२२-वि. म ३७६ श्रावण शुक्ला • की शाम से) इस सन् का प्रारंभ माना जावे. यह निश्चय हि. म. १७ में होना माना जाता है। हिजरी सन का वर्ष शुद्ध चांद्र वर्ष है. इसके प्रत्येक मास का प्रारंभ चंद्रदर्शन (हिंदुओं के प्रत्येक मास की शुक्ला २) से होता है और दमरे चंद्रदर्शन तक मास माना जाता है. प्रत्येक नारीग्व सायंकाल से प्रारंभ होकर दूसरे दिन के सायंकाल तक मानी जाती है. इसके १२ महीनों के नाम ये हैं- १ मुहर्रम्, २ सफर, ३ रवीउ अब्वल, ४ रबीउल आग्विर या रथी उमसारी, ५ जमादिउल् अव्वल, ६ जमादिउल् आखिर या जमादि उस्सानी, ७ रजय, ८ शायान, ६ रमझान, १० शव्वाल, ११ ज़िल्काद और १२ जिलहिज्ज. चांद्र मास २६ दिन, १ घड़ी, ५० पल और ७ विपल के करीब होने से चांद्र वर्ष मौर वर्ष से १० दिन, ५ घड़ी, ३० पल और ६ विपल के करीब कम होता है. तारीख १५ जुलाई ई. स. १६२२ (वि. सं. १९७६ श्रावण कृष्णा ६) की शाम को इस सन् को प्रारंभ हुए १३०० सौर वर्ष होंगे. उस ममय हिजरी सन् १३४० तारीम्ब २० जिल्काद का प्रारंभ होगा मत एव १३०० सौर वर्षों में ३६ चांद्र वर्ष, १० महीने और १६ दिन बढ़ गये. इस हिसाब से १०० सौर वर्ष में ३ चांद्र वर्ष २४ दिन और घड़ी बढ़ जाती हैं. ऐसी दशा में ईसवी सन् (या विक्रम संवत्) और हिजरी सन् का कोई निश्चित अंतर नहीं रहना. उसका निश्चय गणित से ही होता है. । सूर्यसिद्धांत के अनुसार. २. नवलकिशोर प्रेस ( खखनउ) की छपी हुई 'माईन प्रबरी' बनतर १, १ ३३७. 'गयासुल्लुगात' मै बजायबउल्बुदान' के हवाले से हिजरी सन् १७ में यह निर्णय होना लिखा है (नवलकिशोर प्रेस का छपा 'गयासुल्लुगात', पृ. ३२४). २.
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