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पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/५४

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प्राचीनािमाला दो अत्तरों को ही उलटा ग्बोदना भूल कर मांधा ग्बोद दे तो केवल वे ही अक्षर सिक्के पर उलटे मा जावेंग. ऐमी ग़लतियां कभी कभी हो जाने के उदाहरण मिल आते हैं मानवाहन (आंध्र) वंश के राजा शातकर्णी के भिन्न प्रकार के दो मिक्की पर 'शतकणिम' (शातकणेः) मारा लग्व परण के सिके की नाई उलटा आ गया है'. पार्थिअन अब्दगमिस् के एक मिक्के पर के ग्वगेष्ठी लेग्व का एक अंश उलटा श्रा गया है अर्थात् नागर्ग की नाई बाई ओर मे दाहिनी ओर है (ई. कॉ: पृ. १५). विक्रम संवत् १९४३ के बने हुए इंदार गज्य के पैम पर 'एक पाव आना इंदोर यह लेग्व उलटा आया है। महाक्षत्रप रंजुवुल (गजुल ) के एक मिके पर ग्यरोष्ठी लेग्व की तरफ के ग्रीक अक्षर Y और E से बने हुए मानाग्राम में E अक्षर उलटा आगया है परंतु दमर मिक्कों पर मीधा है'. एक प्राचीन मुद्रा पर श्रीस्सपकुल लग्व है, जिममें श्री और पय दो अक्षर उलटं आ गये हैं. एमे ही पटना से मिली हुई एक मुद्रा पर के 'अगपलश (अंगपालस्य ) लेग्य में 'अ' उलटा आगया है '. एमी दशा में एरण के मिक्क पर के उलट लग्न के आधार पर यह मान लेना कि 'ग्रामी लिपि पहिले दाहिनी ओर से बाई ओर लिम्ची जाती थी 'किमी तरह अादरणीय नहीं हो सकता प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता डॉ. हुल्श ( Fluitzech ) ने लिग्वा है कि बृलर एरण के मिकं को, जिस पर के अक्षर दाहिनी ओर मे बाई और हैं, बान्नी के मंमिटिक लिपि में निकलने का प्रमाण मानता है, इममें मैं उमस महमत नहीं हो सकता. यह जानी हुई बात है कि मि पर अक्षर टीक आने के लिय ठप्प पर उनका उलटा ग्वादना चाहियः हम बात को हिन्दुस्तानी टप्पा ग्वादने वाले अमर भूल जाते हैं डॉ फ्लीट" ने भी गमाही मत प्रकट किया है. ब्राह्मी लिपि के न ना अक्षर फिनिशिअन् या किमी अन्य लिपि में निकले हैं और न उमकी बाई ओर में दाहिनी ओर लिम्बन की प्रणाली किी और लिपि में बदल कर बनाई गई है भारतवर्ष के अायों का अपनी खोज मे उत्पन्न किया हुआ मौलिक आविष्कार है इमकी प्राची- नता और मागमुंदग्ना में चाहे इमका कर्ता ब्रह्मा देवता माना जा कर इसका नाम ब्रान्मी पड़ा, , 1 3 लिखा जाना है । लिपि पत्र ७८ ) परंतु पहिले एमा न था (लिपिपत्र २०३५ ग. कॅ. कॉ. श्राक्ष पृ. ४ प्लट संख्या : श्रार . जि. पृ ३३६ पंग नाम के प्रत्येक अंश के प्रारंभ के मानिक दो या नान वणों को मिला कर जो एक विलक्षण चिक बनाया जाता है उसे अंग्रेजी में मानाग्राम एकान्नर) कहत। गा. काँ ग्री मी पृ मंग्या ५ गा को पी सी मेरच्या ज गंग मो: ई म १६ पृ ४ मंन्या. के पास रि जि. पनर ३, मंग्या. ६ग ८५ मे डॉन मार्टिना डी जिल्ला विक्रर्मामघन गयलाटा मामाइटी के जनन (त्रैमासिक पत्रिका म एक पत्र प्रकाशित कर यह बतलाना चाहा था कि मीलान में कह शिलालम्व प्राचीन ब्राह्मी लिपि के मिल ह जिनमें से दो मे अक्षर उलट है. परंतु उनकी छापों के अभाव में उनका विवचन नही किया जा सकता' । ज गए मा. ई स ६५. १८६५-६८) और ईम. OF में एक लम्ब उसी जर्नल में फिर छपवागा जिग्नम उल गदा हुअा का शिलालग्ब ना प्रका शित न किया किंतु उनकी छाप शीघ्र प्राम करन का यन्न करने की इच्छा प्रकट की भार अशोक के गिरनार के लेख में प्र' के स्थान में पं 'ब' के स्थान में 'नं श्रादि जो अशुद्धियां मिलती र उनपर म निद्धांत निकाला कि प्राली लिपि का रुख बदलने में ये अक्षर इस तरह लिख गय' ज ग ए मा ई स 101 पृ ३५. परंतु गिरनार के मांग लग्व को ध्यान पूर्वक पढ्नवाले को यह अवश्य मानम हो जायगा कि उसके लिबनवान को भयकाक्षगं का ठीक ठीक भान न था और संयुक्ताक्षर में प्रथम आने वाल र रेफ) नथा द्वितीय श्राने वाले र'का अन्नर तो वह समझता ही न था जिससे उसने संयुक्ताक्षरों में एमी ऐमी अंनक अशुद्धिया की है. यदि इन अशुद्धियों पर में ही यह मिशान स्थिर किया जा सकता हो किये ग्राह्मी लिपि के उलटे लिम्व जान के प्रत्यक्ष उदाहरण है तो वान दुसर्गर है. म०३ में डॉ गइम ट्रेविहज न विक्रममिय के ऊपर लिम्ब हुग पत्र और लब के हवाले में मान लिया कि ब्राह्मी लिपि उलटी भी लिखी जानी थी (ड बु.ई. पृ. १३५ ), परंतु माथ में यह भी लिख दिया कि अब तक उलटी लिपि का कार्ड शिलालेख प्रसिद्ध नहीं हुश्रा. र , जि २६, पृ. ३३६. वृ: प. के अंग्रजी अनुवाद की भूमिका. पृ. ३-४.