पृष्ठ:भारतीय प्राचीन लिपिमाला.djvu/५९

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बगष्टी लिपि की उत्पत्ति ३३ कुशनवंशी राजाओं के समय के हैं इनमें से कितनं एक में गजाओं के नाम मिलते हैं, और दूसरों में माधारण पुरुषों के ही नाम हैं, राजाओं के नहीं ये बौद्ध स्तुपों में रक्व हुए पत्थर आदि के पात्रों और मोने, चांदी या नांये के पत्रों पर; अथवा चटानां और शिलानी या मृर्तियों के आमनी पर खुद हुए मिले है. इनमें में अधिकतर गांधारदेश में ही मिले हैं, और वहां भी विशेषकर तक्षशिला ( शाहढंग, पंजाब के ज़िल गवलपिंडी में ) और चारसडा (पुष्कलाबनी) सं. पंजाय के बाहर अफगानिम्नान में वईक (जिल बर्डक में ) तथा हिडा (जलालाबाद म ५ मील दक्षिण ) आदि में, और मथुरा में, मिल है. अन्यत्र' नहीं. भाग २ कुशनयंशी गजाश्रा के समय क. खगष्ट्र निर्माण के लग्व अधिक मंरा में मिन है. गजा कनिष्क के समय का एक शिलालख (मं. ११ का जटा । जिल युसफज़ में ) ग (ज .. म पृ.१३६, पक ताम्रलख । मं १ का ) सुणविहार (पंजाब के बहावनपुर गाय में ) म (ई.. जि.1पृ. ३२६ श्रार जि पृ १२८। एक लग्व माणिकपाल म ( क श्रा. ग. गि, जि प १० गामन का मंट) पार पेशावर के कनिष्कविहार के स्तर में मिले हप टिप पर बंद नीन लोट लाई लग्न । श्रा ग ग ... पृ. १३०-३८) मिल है. भाग नामक नाल । बारानीलाय स माल पर-पंजाब में ) के अंदर के एक पुराने कुग में से पाझप क पुत्र कनिक के समय का एक शिलालग्य (सं.४ का मिला । जिए. इविक समय का एक लग्व। गं ५१ का । वडक अफ़गा- निम्नान में । क तप मे म मिल हुए एक पीतल के पात्र परम्पदा है (जि. 2. २१०.५१). पंजना । जिल युमफजई में से एक शिलालग्ब गं.. का विनी गुशन . कुशन ) वा गजा के ममय का । क पा स. निजि ५. पृ १६१. और प्लट मंग्या नथा मनाम गातिगज वपुत्र ग्यशन कुशन उन नाम के गजा या कुशन यंशी किागजा। का एक. लग्य । म का।यपत्र पर पटा हुश्रा तक्षशिला ग भिला। ज ग ग मा ! म. १६२५ पृ ४-ॐ और ई. पृ11 मामन कट लिहा के स्तृप म मिन्न भिट्ठी के पात्र प० । म २८ का लग्ब ( ज । म स १६५ पृ.६२ श्रार उस के सामने का पट शकट पंजाब के जिल अटा में में मिला हा सं १० का ) शिलालग्न । .. पं ज ३७, पृ.। हिन्द । युग्मजा जिम्न म । कः । स . का । लग्ब ( के श्रा म. रि जि ५ yइंट, मण्या। फतहजंग ( ज़िल अटक म ) का ( सं का शिलालव । ज म .:" भाग २. पृ ३० । मुचा ( जिल युमफ़ज़ई में । म मिला हा सं0) का शिलालग्य : .जि । बोज पहार का सं २ का लग्य । ज. प. ई .६४, भाग २, ५५ पाजा । जिन युसमय का ( का) शिला लग्य । ई ए जि ३७ पृ ६५ । कलदर्ग नदी । पधिमांना मामात प्रमदगी के पास में म मिला हुश्रा (मं ।।३। का शिलानग्य । प जि ३३ पृ१६ । कारहर्ग। चारमा प्रधान ननगरस - भील रत्ता में मिली हद हाग्निी की मूर्ति के श्रासनपर ग्युटा हुा । सं १७६ का लग्न । आ गई म... पट ७०. मंग्या देवा। जिले युसफजई में का। सं २०० का शि- लालख ज प ल ४ भाग - १ लानि नंगा जिल म्वान म । मे मिली हुई बुद्ध की मूर्ति के आमन पर खुदा हश्रा ( मंका लग्न 'पा स स १०३-४ पृ २५ लट 50 मंग्या ४ हननगर । पंगावर जिल की चाग्मना तहसील में । म मिला हु। बुद्ध की ( अपने शिष्यो महिन । मान के श्रामन पर खुदा हा मं३८४ का । लख (ए. ई. जि १२, पृ: ये सब भाधारण पुरुषों के मंचन वाले लग्खर इन लखा में जो संवन लिग्वा है यह कौन है यह अभी तक पूर्णतया निश्चित नहीं है, परंतु हमार्ग मंनि म उनमे म अधिकतर लग्यो का संयन शक मंवन ही होना चाहिय बिना मंचत वाल लव है तक्षशिला के गंग नामक म्तृप में मिला हा सुवर्णपत्र पर पढ़ा हुअा लग्व , क ा म रि जि. पृ १३०, और प्लेट ५६ । मागिांकाल कम्तयामिल हुए छोट में गैयपत्र पर ग्यदा हुआ छोटा सा लेख जि. १२ पृ ३०१५ तक्षशिला के स्तुप में मिला हश्रा ताम्रपत्र पर का लव । क.पा म रिजि २. प्लट ५। मंग्या ३ ज । सो बंगाई म १९०८, पृ ३६४ 1. नक्षशिला के स्तपम मिल हुए पात्र पर का लेख (.ई. जि = पृ १६), मोग (कालाहिमार मं. भील पश्चिम में ) के एक चौकट प्राचीन कुरा में नीन तरफ एक एक छोटा लग्न । क पा सरि जि ट ५६ ), चारसड़ा (पुश्कलायती) के स्तुपा से मिल हए ५ छोटे छोटे लख, जिनमे से मिट्टी की हंडियात्रा पर श्रा स १९०२-३. पृ १६३ ) और दो मूर्तियों के आमना पर (श्रा ग. १६०२-३, पृ ११७.१७) एषद हुए ह कन्टिभाग और पठ्यार । दोनों ज़िल कांगड़ा में ) मे एक एक छोटा लेख ( चटान पर खुटा ।। जि ७. पृ. ११८ के मामन का प्लंट) युसफजई जिल में सहर्ग बहलोल सं दो, और सड़ो मे एक शिलालग्न । के श्रा म.रि जि ५. लट १६ संख्या, ५ और ६) और गांधार शली की मूर्तियों के सामनी पर के छोटे छोटे लव । श्रा मः स. १९०३-४. लट ७०, संख्या २.३ ५, ६, ७ और = ) केवल भशाक के मिजापुर ( माइसार गज्य मे ) के लेख ( संख्या १ ! के अंत की अर्थात १३ वीं पंक्ति में 'पंडन लिखितं' के बाद स्वराष्ठी लिपि में लिपिकरेण' खुदा है (गई: जि. ३. पृ १३८ के सामने का प्लेट , जिससे अनुमान होता