हाय सुनत नहिं निठुर भये क्यो परम दयाल कहाई।
सब विधि बूड़त लखि निज देसहि लेहु न अबहुँ बचाई।।
इसको पढ़कर किस सहृदय का हृदय न पसीज उठेगा। सुदर्शन चक्र की धार क्या अब हम लोगो के लिए कुंठित हो गई है जब इसी भारत के पशुओं की रक्षा करने में वह नहीं हुई थी। कैसी मर्म-भेदी चुनौती है पर दुर्भाग्य ! इस एक पद में ही भारत की सारी अंतर्व्यथा कह दी है और कितनी सुंदर व्यंजना के साथ । शास्त्रों द्वारा कथित ईश्वर की महिमा पर आक्षेप कर व्यथा की तीव्रता का कितना मार्मिक प्रदर्शन किया गया है।
इस नाटक के नायक सूर्यदेव, नायिका नीलदेवी तथा प्रतिनायक अब्दुश्शरीफ खॉ सूर है और तीनों के विषय में ऊपर लिखा जा चुका है। नाटककार ने इनके चरित्र-चित्रण में पूरी सफलता प्राप्त की है और जिस उद्देश से इसे लिखा है उसकी पूर्ति अच्छी तरह हो गई है।
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११-अंधेरनगरी
यह छ अंको का एक प्रहसन है, जो किसी ऐसे ही आचरण के मूर्ख राजा को लक्ष्य करके लिखा गया है। कहा जाता है कि इस नाटक का उनपर प्रभाव भी पड़ा था । यह 'नैशनल थियेटर' नामक किसी मंडली के लिए एक ही दिन में लिखा गया था और अभिनीत भी हुआ था। इस प्रकार की कहानी