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भारतेंदु-नाटकावली

सब झूठा था, क्योंकि कलियुग नहीं है कि अच्छा करते बुरा फल मिले। निस्संदेह मैं महा-अभागा और बड़ा पापी हूँ। ( रंगभूमि की पृथ्वी हिलती है और नेपथ्य में शब्द होता है ) क्या प्रलयकाल आ गया? नहीं, यह बड़ा भारी असगुन हुआ है, इसका फल कुछ अच्छा नहीं; वा अब बुरा होना ही क्या बाकी रह गया है जो होगा? हा! न-जाने किस अपराध से दैव इतना रूठा है। ( रोता है ) हा, सूर्य-कुल-बाल-बाल-प्रवाल! हा हरिश्चंद्र-हृदयानंद! हा शैव्यावलंब! हा वत्स रोहिताश्व! हा मातृ-पितृ-विपत्ति-सहचर! तुम हम लोगो को इस दशा में छोड़कर कहाँ गए! आज हम सचमुच चांडाल हुए। लोग कहेंगे कि इसने न-जाने कौन दुष्कर्म किया था कि पुत्रशोक देखा। हाय! हम संसार को क्या मुँह दिखावेनगे! ( रोता है ) वा संसार में इस बात के प्रगट होने के पहले ही हम भी प्राणत्याग करें? हा निर्लज्ज प्राण! तुम अब भी क्यों नहीं निकलते? हा वज्र-हृदय! इतने पर भी तू क्यो नहीं फटता? अरे नेत्रो! अब और क्या देखना बाकी है कि तुम अब तक खुले हो? या इस व्यर्थ प्रलाप का फल ही क्या है, समय बीता जाता है। इसके पूर्व कि किसी से सामना हो, प्राणत्याग करना ही उत्तम बात है। ( पेड़ के पास जाकर फाँसी देने के योग्य डाल खोजकर उसमें दुपट्टा बाँधता है ) धर्म! मैंने अपने