पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२६५

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प्रेमजोगिनी

दलाल---और अपना भी गाहकै है।

दूकान०---और भाई हमहूँ चार पैसा एके बदौलत पावा है। भूरी०---तू सब का बोलबो, तू सब निरे दब्बू चप्पू हौ, हम बोलबै। ( परदेसी से ) ए चिड़ियाबावली के परदेसी फरदेसी! कासी की बहुत निंदा मत करो। मुँह बस्सैये, का कहैं के साहिब मजिस्टर हैं नाहीं तो निंदा करना निकास देते।

पर०---निकास क्यों देते? तुमने क्या किसी का ठीका लिया है?

झूरी०---हाँ हाँ, ठीका लिया है मटियाबुर्ज।

पर०---तो क्या हम झूठ कहते हैं?

झूरी०---राम राम, तू भला कबौं झूठ बोलबो, तू तो निरे पोथी के बेठन हौ।

पर०---बेठन क्या?

भूरी०---बे ते मत करो गप्पो के, नाहीं तो तोरो अरबी-फारसी घुसेड़ देबै।

पर०---तुम तो भाई अजब लड़ाके हो, लड़ाई मोल लेते फिरते हो। बे ते किसने किया है? यह तो अपनी-अपनी राय है; कोई किसी को अच्छा कहता है, कोई बुरा कहता है, इससे बुरा क्या मानना।

झूरी०---सच है पनचोरा, तू कहै सो सञ्च, बुड्ढी तू कहे सो सच्च।