पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/२९३

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काव्य, सुरस सिंगार के दोउ दल, कविता नेम।
जग-जन सों के ईस सों कहियत जेहि पर प्रेम॥
हरि-उपासना, भक्ति, वैराग, रसिकता, ज्ञान।
सोधै जग-जन मानि या चंद्रावलिहि प्रमान॥