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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३७१

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भारतेंदु-नाटकावली

प्यारीजू सो। हमने तो पहिले ही कही कै यह सब लीला है। ( हाथ जोड़कर ) प्यारी, छिमा करियौ, हम तौ तुम्हारे सबन के जनम जनम के रिनियाँ हैं। तुमसे हम कभू उरिन होइवेई के नहीं। ( अॉखों में आँसू भर आते है )

चंद्रा०---( घबड़ाकर दोनों हाथ छुड़ाकर ऑसू भर के ) बस बस नाथ, बहुत भई, इतनी न सही जायगी। आपकी आँखों में आँसू देखकर मुझसे धीरज न धरा जायगा। ( गले लगा लेती है )

( विशाखा आती है )

विशाखा---सखी! बधाई है। स्वामिनी ने आज्ञा दई है के प्यारे सों कही दै चंद्रावली की कुंज मैं सुखेन पधारौ।

चंद्रा०---( बड़े आनंद से घबड़ाकर ललिता-विशाखा से ) सखियो, मैं तो तुम्हारे दिए पीतम पाए है। ( हाथ जोड़कर ) तुमारो गुन जनम-जनम गाऊँगी।

विशाखा---सखी, पीतम तेरो तू पीतम की, हम तौ तेरी टहलनी हैं। यह सब तौ तुम सबन की लीला है। यामैं कौन बोलै और बोलै हू कहा जौ कछू समझै तौ बोलै---या प्रेम की तौ अकथ कहानी है। तेरे प्रेम को परिलेख तो प्रेम की टकसार होयगो और उत्तम प्रेमिन को छोड़ि और काहू की समझ ही मैं न आवैगो। तू धन्य, तेरो प्रेम धन्य, या प्रेम के समझिवेवारे धन्य और तेरे प्रेम को चरित्र जो पढ़ै