यदि संयोग से बढ़ जाय तो उसकी बहुत सी बातों को तरह देकर टालना चाहिए, और जो कदाचित् बड़े प्रतिष्ठित मनुष्य का राजा अनादर करे तो उसकी जड़ काटकर छोड़े, फिर उसका कभी विश्वास न करे। प्रायः अमीर लोग पहले तो मुसाहिब या कारिंदो को बेतरह सिर चढ़ाते हैं, और फिर छोटी-छोटी बातों पर उनकी प्रतिष्ठा हीन कर देते हैं। इसी से ऐसे लोग राजाओ के प्राण के गाहक हो जाते हैं और अंत में नंद की भांति उनका सर्वनाश होता है।
शकटार यद्यपि बंदीखाने से छूटा और छोटा मंत्री भी हुआ, किंतु अपनी अप्रतिष्ठा और परिवार के नाश का शोक उसके चित्त में सदा पहिले ही सा जागता रहा। रात-दिन वह यही सोचता कि किस उपाय से ऐसे अव्यवस्थित-चित्त उद्धत राजा का नाश करके अपना बदला ले। एक दिन वह घोड़े पर हवा खाने जाता था। नगर के बाहर एक स्थान पर देखता है कि एक काला सा ब्राह्मण अपनी कुटी के सामने मार्ग की कुशा उखाड़-उखाड़ कर उसकी जड़ में मठा डालता जाता है। पसीने से लथपथ है, परंतु कुछ भी शरीर की ओर ध्यान नहीं देता। चारो ओर कुशा के बड़े-बड़े ढेर लगे हुए हैं। शकटार ने आश्चर्य से ब्राह्मण से इस श्रम का कारण पूछा। उसने कहा---"मेरा नाम विष्णुगुप्त चाणक्य है। मैं ब्रह्मचर्य में नीति, वैद्यक, ज्योतिष, रसायन आदि