पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/३९२

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मुद्राराक्षस

राजाओं ने बड़े आदर से राक्षस को सहायता देना स्वीकार किया तो वह तपोवन के निकट फिर से लौट आया और वहाँ से चद्रगुप्त के मारने को एक विषकन्या भेजी और अपना विश्वासपात्र समझ कर जीवसिद्धि को उसके साथ कर दिया। चाणक्य ने जीवसिद्धि द्वारा यह सब बात जान कर और पर्वतक की धूर्तता और विश्वासघातकता से कुढ कर प्रकट में इस उपहार को बड़ी प्रसन्नता से ग्रहण किया और लाने वाले को बहुत सा पुरस्कार देकर बिदा किया। सॉझ होने के पीछे धूर्ताधिराज चाणक्य ने इस कन्या को पर्वतक के पास भेज दिया और इंद्रियलोलुप पर्वतक उसी रात को उस कन्या के संग से मर गया। इधर चाणक्य ने यह सोचा कि मलयकेतु यहाँ रहेगा तो उसको राज्य का हिस्सा देना पड़ेगा, इससे किसी तरह इसको यहाँ से भगावें तो काम चले। इस कार्य के हेतु भागुरायण नामक एक प्रतिष्ठित विश्वासपात्र पुरुष को मलयकेतु के पास सिखा-पढ़ा कर भेज दिया। उसने पिछली रात को मलयकेतु से जा-


विषकन्या शास्त्रों में दो प्रकार की लिखी हैं। एक तो थोड़े से ऐसे बुरे योग हैं कि उस लग्न में उस प्रकार के ग्रहों के समय जो कन्या उत्पन्न हो उसके साथ जिसका विवाह हो वा जो उसका साथ करे वह साथ ही वा शीघ्र ही मर जाता है। दूसरे प्रकार की विषकन्या वैद्यक रीति से बनाई जाती थी। छोटेपन से बरन गर्भ से कन्या को दूध में वा भोजन में थोडा-थोडा विष देते-देते बडी होने पर उसका शरीर ऐसा विषमय हो जाता था कि जो उसका अंग-संग करता वह मर जाता।