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भारतेंदु-नाटकावली

सिद्धा०---महाराज! आपने जो संदेशा कहा, वह मैंने भली भाँति समझ लिया, अब काम पूरा करने जाता हूँ।

चाणक्य---( मोहर और पत्र देकर ) सिद्धार्थक! जा तेरा काम सिद्ध हो।

सिद्धा०---जो आज्ञा। ( प्रणाम करके जाता है )

शिष्य---( आकर ) गुरुजी, कालपाशिक, दंडपाशिक आपसे निवेदन करते है कि महाराज चंद्रगुप्त की आज्ञा पूर्ण करने जाते हैं।

चाणक्य---अच्छा, बेटा! मैं चंदनदास जौहरी को देखा चाहता हूँ।

शिष्य---जो आज्ञा। ( बाहर जाकर चंदनदास को लेकर आता है ) इधर आइए सेठजी!

चंदन०---( आप ही आप ) यह चाणक्य ऐसा निर्दय है कि यह जो एकाएक किसी को बुलावे तो लोग बिना अपराध भी इससे डरते हैं, फिर कहाँ मैं इसका नित्य का अपराधी, इसी से मैंने धनसेनादिक तीन महाजनों से कह दिया है कि दुष्ट चाणक्य जो मेरा घर लूट ले तो आश्चर्य नहीं, इससे स्वामी राक्षस का कुटुंब और कहीं ले जाओ, मेरी जो गति होनी है वह हो।

शिष्य---इघर आइए साहजी!

चंदन---आया।( दोनों घूमते हैं )