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भारतेंदु-नाटकावली

चंद्रगुप्त---आर्य के दर्शन से कृतार्थ होने को।

चाणक्य---( हँसकर ) भया, बहुत शिष्टाचार हुआ, अब बताओ क्यों बुलाया है? क्योंकि राजा लोग किसी को बेकाम नहीं बुलाते।

चंद्र०---आर्य! आपने कौमुदी-महोत्सव के न होने में क्या फल सोचा है?

चाणक्य---( हँसकर ) तो यही उलाहना देने को बुलाया है न

चंद्र०---उलाहना देने को कभी नहीं।

चाणक्य---तो क्यों?

चंद्र०---पूछने को।

चाणक्य---जब पूछना ही है तब तुमको इससे क्या? शिष्य को सर्वदा गुरु की रुचि पर चलना चाहिए।

चंद्र०---इसमें कोई संदेह नहीं पर आपकी रुचि बिना प्रयोजन नहीं प्रवृत्त होती, इससे पूछा।

चाणक्य---ठीक है, तुमने मेरा आशय जान लिया, बिना प्रयोजन के चाणक्य की रुचि किसी ओर कभी फिरती ही नहीं।

चंद्र०---इसी से तो सुनने बिना मेरा जी अकुलाता है।

चाणक्य---सुनो, अर्थशास्त्रकारों ने तीन प्रकार के राज्य लिखे हैं---एक राजा के भरोसे, दूसरा मंत्री के भरोसे, तीसरा