पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४७०

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मुद्राराक्षस

प्रतिहारी---इधर आवें, महाराज, इधर आवें।

चंद्र०---( उठकर चलता हुआ आप ही आप )

गुरु आयसु छल सों कलह करिहू जीय डराय।
किमि नर गुरुजन सों लरहिं, यहै सोच जिय हाय॥

( सब जाते हैं---जवनिका गिरती है )