यह सोचकर राक्षस चंद्रगुप्त से मिल जाय और चंद्रगुप्त भी अपने बड़े लोगो का पुराना मंत्री समझकर उसको मिला ले, तो ऐसा न हो कि कुमार हम लोगो पर भी विश्वास न करे।
मलय०---ठीक है मित्र भागुरायण! राक्षस मंत्री का घर कहाँ है?
भागु०---इधर कुमार, इधर। ( दोनो घूमते है ) कुमार! यही राक्षस मंत्री का घर है---चलिए।
मलय०---चले।
[ दोनो भीतर जाते हैं
राक्षस---अहा! स्मरण आया। ( प्रकाश ) कहो जी! तुमने कुसुमपुर में स्तनकलस वैतालिक को देखा था?
कर०---क्यो नहीं?
मलय०---मित्र भागुरायण! जब तक कुसुमपुर की बातें हों तब तक हम लोग इधर ही ठहरकर सुनें कि क्या बात होती है: क्योकि---
भेद न कछु जामैं खुलै याही भय सब ठौर।
नृप सो मंत्रीजन कहहिं बात और की और॥
भागु०---जो आज्ञा। ( दोनो ठहर जाते है )
राक्षस---क्यो जी! वह काम सिद्ध हुआ?
कर०---अमात्य की कृपा से सब काम सिद्ध ही है।
मलय०---मित्र भागुरायण! वह कौन सा काम है?