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भारतेंदु-नाटकिवली
राक्षस---देख तो द्वार पर कौन भिक्षुक खड़ा है?
प्रियं०---जो आज्ञा। ( बाहर जाकर फिर आता है ) अमात्य! एक क्षपणक भिक्षुक।
राक्षस---( असगुन जानकर आप ही आप ) पहिले ही क्षपणक का दर्शन हुआ।
प्रियंक---जीवसिद्धि है।
राक्षस---अच्छा बोलाकर ले आ।
प्रियं०---जो आज्ञा।
[जाता है
( क्षपणक आता है )
क्षपणक---
पहिले कटु परिणाम मधु, औषध-सम उपदेस।
मोह व्याधि के वैद्य गुरु, तिनको सुनहु निदेस॥
( पास जाकर ) उपासक! धर्म लाभ हो!
राक्षस---ज्योतिषीजी, बताओ, अब हम लोग प्रस्थान किस दिन करें?
क्षप०---( कुछ सोचकर ) उपासक! मुहूर्त तो देखा। आज भद्रा तो पहर पहिले ही छूट गई है और तिथि भी संपूर्णचंद्रा पौर्णमासी है। आप लोगों को उत्तर से दक्षिण जाना है और नक्षत्र भी दक्षिण ही है।
अथए सूरहि, चंद के उदए गमन प्रशस्त।
पाइ लगन बुध केतु तौ उदयो हू भो अस्त॥*
- भद्रा छूट गई अर्थात् कल्याण को तो आपने जब चन्द्रगुप्त का पक्ष