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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/४८६

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भारतेंदु-नाटकावली

राक्षस---अजी, तुम और जोतिषियो से जाकर झगड़ो।

क्षप०---आप ही झगड़िए, मैं जाता हूँ।

राक्षस---क्या आप रूस तो नहीं गए?

क्षप०---नहीं, तुमसे जोतिषी नहीं रूसा है।

राक्षस---तो कौन रूसा है?

क्षप०---( आप ही आप ) भगवान्, कि तुम अपना पक्ष छोड़कर शत्रु का पक्ष ले बैठे हो।

[ जाता है

राक्षस---प्रियंबदक! देख तो कौन समय है।

प्रियं०---जो आज्ञा। ( बाहर से हो आता है ) आर्य! सूर्यास्त होता है।

राक्षस---( आसन से उठकर और देखकर ) अहा! भगवान् सूर्य अस्ताचल को चले----

जब सूरज उदयो प्रबल, तेज धारि आकास।
तब उपवन तरुवर सबै छायाजुत भे पास॥
दूर परे ते तरु सबै अस्त भए रवि-ताप।
जिमि धन-बिन स्वामिहि तजै भृत्य स्वारथी आप॥

( दोनों जाते हैं )