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मुद्राराक्षस
भासु०---जो आज्ञा।
[ जाता है
( क्षपणक आता है )
क्षप०---आवक को धर्म लाभ हो!
भागु०---( छल से उसकी ओर देखकर ) यह तो राक्षस का मित्र जीवसिद्धि है। ( प्रगट ) भदंत! तुम नगर में राक्षस के किसी काम से जाते होगे।
तप०---( कान पर हाथ रखकर ) छी-छी! हमसे राक्षस वा पिशाच से क्या काम?
भागु०---आज तुमसे और मित्र से कुछ प्रेम-कलह हुआ है, पर यह तो बताओ कि राक्षस ने तुम्हारा किया है?
क्षप०---राक्षस ने कुछ अपराध नहीं किया है, अपराधी तो हम हैं।
भागु०----ह ह ह ह! भदंत! तुम्हारे इस कहने से तो मुझको सुनने की और भी उत्कंठा होती है।
मलय०---( आप ही आप ) मुझको भी।
भागु०---तो भदंत! कहते क्यों नहीं?
क्षप०---तुम सुनके क्या करोगे?
भागु०---तो जाने दो, हमें कुछ आग्रह नहीं है, गुप्त हो तो मत कहो।
भा० ना०---२५