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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५०८

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भारतेंदु-नाटकावली

राक्षस---( दुःख से आप ही आप ) हा! यह और जले पर नमक है। ( प्रगट कानो पर हाथ रखकर ) नारायण! देव पर्वतेश्वर का कोई अपराध हमने नहीं किया।

मलय०---फिर पिता को किसने मारा?

राक्षस०---यह दैव से पूछो।

मलय०---दैव से पूछे, जीवसिद्धि क्षपणक से न पूछें?

राक्षस---( आप ही आप ) क्या जीवसिद्धि भी चाणक्य का गुप्तचर है! हाय! शत्रु ने हमारे हृदय पर भी अधिकार कर लिया?

मलय०---( क्रोध से ) भासुरक शिखरसेन सेनापति से कहो कि राक्षस से मिलकर चंद्रगुप्त को प्रसन्न करने को पॉच राजे जो हमारा बुरा चाहते हैं, उनमें कौलूत चित्रवर्मा, मलयाधिपति सिंहनाद और कश्मीराधीश पुष्कराक्ष ये तीन हमारी भूमि की कामना रखते हैं, सो इनको भूमि हो में गाड़ दे; और सिंधुराज सुषेण और पारसीकपति मेघाक्ष हमारी हाथी की सेना चाहते हैं सो इनको हाथी ही के पैर के नीचे पिसवा दे।

पुरुष---जो कुमार की आज्ञा।

[ जाता है

मलय०---राक्षस! हम मलयकेतु हैं, कुछ तुममे विश्वासघाती राक्षस नहीं हैं। इससे तुम जाकर अच्छी तरह चंद्रगुप्त का आश्रय करो।