पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५१०

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षष्ठ अंक

स्थान---नगर के बाहर सड़क

( कपडा, गहिना पहिने हुए सिद्धार्थक आता है )

सिद्धार्थक---

जलद-नील-तन जयति जय, केशव केशी-काल।
जयति सुजन-जन-दृष्टि-ससि, चंद्रगुप्त नरपाल॥
जयति आर्य चाणक्य की नीति सहज बल-भौन।
बिनही साजे सैन नित, जीतत अरि-कुल जौन॥
चलो, आज पुराने मित्र समिद्धार्थक से भेंट करे।
( घूमकर ) अरे! मित्र सिद्धार्थक आप ही इधर आता है।

( समिद्धार्थक आता है )

समिद्धार्थक---

मिटत ताप नहिं पान सो, होत उछाह बिनास।
बिना मीत के सुख सबै, औरहु करत उदास॥

सुना है कि मलयकेतु के कटक से मित्र सिद्धार्थक आ गया है। उसी को खोजने को हम भी निकले हैं कि मिले तो बड़ा आनंद हो। ( आगे बढ़कर ) अहा! सिद्धार्थक तो यहीं है। कहो मित्र! अच्छे तो हो?