पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५२२

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मुद्राराक्षस

बिगत जलद नभ नील खड्ग यह रोस बढ़ावत।
मीत-कट सों दुखिहु मोहिं रनहित उमगावत॥

पुरुष---सेठ चंदनदास के प्राण बचाने का उपाय मैंने सुना किंतु ऐसे टेढ़े समय में इसका परिणाम क्या होगा, यह मैं नहीं कह सकता। ( राक्षस को देखकर पैर पर गिरता है ) आर्य! क्या सुगृहीत-नामधेय अमात्य राक्षस आप ही हैं?

यह मेरा संदेह आप दूर कीजिए।

राक्षस---भद्र! भर्तृकुल-विनाश से दुखी और मित्र के नाश का कारण यथार्थ-नामा अनार्य राक्षस मैं ही हूँ।

पुरुष---( फिरि पैर पर गिरता है ) धन्य हैं! बड़ा ही आनंद हुआ। आपने हमको आज कृतकृत्य किया।

राक्षस---भद्र! उठो। देर करने की कोई आवश्यकता नहीं। जिष्णुदास से कहो कि राक्षस चंदनदास को अभी छुड़ाता है।

( खड्ग खींचे हुए, 'समर साध' इत्यादि पढ़ता हुआ इधर-उधर टहलता है )

पुरुष---( पैर पर गिरकर ) अमात्यचरण! प्रसन्न हों। मैं यह बिनती करता हूँ कि चंद्रगुप्त दुष्ट ने पहले शकटदास के वध की आज्ञा दी थी। फिर न जाने कौन शकटदास को छुड़ाकर उसको कहीं परदेश में भगा ले गया। आर्य शकटदास के वध में धोखा खाने से चंद्रगुप्त ने

भा० ना०---२७