हम उस योग्य नहीं; विशेष करके जब तक तुम शस्त्र ग्रहण किए हो तब तक हमारे शस्त्र ग्रहण करने का क्या काम है?
चाणक्य---भला अमात्य! आपने यह कहाँ से निकाला कि हम योग्य हैं और आप अयोग्य हैं? क्योंकि देखिए---
रहत लगामहिं कसे अश्व की पीठ न छोड़त।
खान पान असनान भोग तजि मुख नहिं मोड़त॥
छूटे सब सुख-साज नींद नहिं आवत नयनन।
निसि दिन चौंकत रहत वीर सब भय धरि निज मन॥
वह हैादन सों सब छन कस्यो नृप-गजगन अवरेखिए।
रिपुदर्प-दूर-कर अति प्रबल निज महात्मबल देखिए॥
वा इन बातो से क्या! आपके शस्त्र ग्रहण किए बिना तो चंदनदास बचता भी नहीं।
राक्षस---( आप ही आप )
नंद-नेह छूट्यौ नहीं दास भए अरि साथ।
ते तरु कैसे काटिहैं जे पाले निज हाथ॥
कैसे करिहैं मित्र पै हम निज कर सों घात।
अहो भाग्य-गति अति प्रबल मोहिकछु जानि न जात॥
( प्रकाश ) अच्छा विष्णुगुप्त! मँगायो खड्ग "नमस्सर्व- कार्यप्रतिपत्ति हेतवे सुहृत्स्नेहाय" देखो, मैं उपस्थित हूँ।
चाणक्य---( राक्षस को खड्ग देकर हर्ष से ) राजन् वृषल!