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भारतदुर्दशा


(निर्लज्जता *[१] आती है)


निर्लज्जता--मेरे आछत तुमको अपने प्राण की फिक्र। छिः छिः !' जीओगे तो भीख माँग खाओगे। प्राण देना तो कायरों का काम है। क्या हुआ जो धन-मान सब गया “एक ज़िंदगी हज़ार नेआमत है।" (देखकर) अरे सचमुच बेहोश हो गया तो उठा ले चले। नहीं-नहीं, मुझसे अकेले न उठेगा। (नेपथ्य की ओर) आशा ! आशा ! जल्दी आओ।

(आशा †[२] आती है)


निर्लज्जता--यह देखो भारत मरता है, जल्दी इसे घर उठा ले चलो।


आशा--मेरे आछत किसी ने भी प्राण दिया है? ले चलो, अभी जिलाती हूँ।

(दोनों उठाकर भारत को ले जाती हैं)

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  1. *जाँघिया--सिर खुला--ऊँची चोली--दुपट्टा ऐसा गिरता पड़ता कि अंग खुले, सिर खुला, खानगियों का सा वेष।
  2. †लड़की के वेष में।