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भारतदुर्दशा


भारतदु०--आज्ञा क्या है, भारत को चारों ओर से घेर लो।


रोग--महाराज! भारत तो अब मेरे प्रवेश-मात्र से मर जायगा। घेरने का कौन काम है? धन्वंतरि और काशिराज दिवोदास का अब समय नहीं है और न सुश्रुत-वाग्भट्ट-चरक ही हैं। बैदगी अब केवल जीविका के हेतु बची है। काल के बल से औषधो के गुणों और लोगों के प्रकृति में भी भेद पड़ गया। बस अब हमें कौन जीतेगा और फिर हम ऐसी सेना भेजेगे जिनका भारतवासियों ने कभी नाम तो सुना ही न होगा; तब भला वे उसका प्रतिकार क्या करेंगे! हम भेजेंगे विस्फोटक, हैजा, डेंगू, अपाप्लेक्सी। भला इनको हिंदू लोग क्या रोकेंगे? ये किधर से चढ़ाई करते हैं और कैसे लड़ते हैं जानेंगे तो हई नहीं, फिर छुट्टी हुई। वरंच महाराज, इन्हीं से मारे जायँगे और इन्हीं को देवता करके पूजेंगे, यहाँ तक कि मेरे शत्रु डाक्टर और विद्वान इसी विस्फोटक के नाश का उपाय टीका लगाना इत्यादि कहेंगे तो भी ये सब उसको शीतला के डर से न मानेंगे और उपाय आछत अपने हाथ अपने प्यारे बच्चों की जान लेंगे।


भारतदु०--तो अच्छा तुम जाओ। महर्घ और टिकस भी यहाँ आते होगे सो उनको साथ लिए जायो। अतिवृष्टि, अना-