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भारतेंदु-नाटकावली


अंध०--बहुत अच्छा, मैं चला। बस जाते ही देखिए क्या करता हूँ।

(नेपथ्य में बैतालिक गान और गीत की समाप्ति में क्रम से पूर्ण अंधकार और पटाक्षेप)

निहचै भारत को अब नास।
जब महराज विमुख उनसों तुम निज मति करी प्रकास॥
अब कहुँ सरन तिन्हैं नहिं मिलिहै ह्वै है सब बल चूर।
बुधि विद्या धन धान सबै अब तिनको मिलिहै धूर॥
अब नहिं राम धर्म अर्जुन नहिं शाक्यसिंह अरु ज्यास।
करिहै कौन पराक्रम इनमें को दैहै अब आस॥
सेवाजी रनजीतसिंह हू अब नहिं बाकी जौन।
करिहै कछू नाम भारत को अब तो सब नृप मौन॥
वही उदैपुर जैपुर रीवॉ पन्ना आदिक राज।
परबस भए न सोच सकहिं कछु करि निज बल बेकाज॥
अँगरेजहु को राज पाइकै रहे कूढ के कूढ।
स्वारथ-पर विभिन्न-मति-भूले हिंदू सब ह्वै मूढ़॥
जग के देस बढ़त बदि-बदि के सब बाजी जेहि काल।
ताहू समय रात इनको है ऐसे ये बेहाल॥
छोटे चित अति भीरु बुद्धि मन चंचल बिगत उछाह।
उदर-भरन-रत, ईस-बिमुख सब भए प्रजा नरनाह॥