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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/५८८

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भारतदुर्दशा


महा०--परंतु इसके पूर्व यह होना अवश्य है कि गुप्त रीति से यह बात जाननी कि हाकिम लोग भारतदुर्दैव की सैन्य से मिल तो नहीं जायँगे।


दू० देशी--इस बात पर बहस करना ठीक नहीं। नाहक कहीं लेने के देने न पड़ें, अपना काम देखिए। (उपवेशन और आप ही आप) हाँ, नहीं तो अभी कल ही झाड़बाजी होय।


महा०--तो सार्वजनिक सभा का स्थापन करना। कपड़ा बीनने की कल मँगानी। हिंदुस्तानी कपड़ा पहिनना। यह भी सब उपाय हैं।


दू० देशी--(धीरे से) बनात छोड़कर गजी पहिरेंगे, हें हें।


एडि०--परंतु अब समय थोड़ा है जल्दी उपाय सोचना चाहिए।


कवि--अच्छा तो एक उपाय यह सोचो कि सब हिंदू मात्र अपना फैशन छोड़कर कोट-पतलून इत्यादि पहिरे जिसमें जब दुर्दैव की फौज आवे तो हम लोगों को योरोपियन जानकर छोड़ दे।


प० देशी--पर रंग गोरा कहाँ से लावेंगे?


बंगाली--हमारा देश में भारतउद्धार नामक एक नाटक बना है। उसमें अँगरेजो को निकाल देने का जो उपाय लिखा, सोई हम लोग दुर्दैव का वास्ते काहे न अवलंबन करें। ओ लिखता पाँच जन बंगाली मिल के अँगरेजों को निकाल