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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६३४

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नीलदेवी

सब वीर––भारतवर्ष की जय––आर्यकुल की जय––महाराज सूर्य्यदेव की जय––महारानी नीलदेवी की जय––कुमार सोमदेव की जय––क्षत्रियवंश की जय।

(आगे-आगे कुमार उसके पीछे तलवार खींचकर क्षत्रिय लोग चलते हैं। रानी नीलदेवी बाहर के घर में आती हैं)

नील॰––पुत्र की जय हो। क्षत्रिय-कुल की जय हो। बेटा, एक बात हमारी सुन लो तब युद्ध-यात्रा करो।

सोम॰––(रानी को प्रणाम करके) माता! जो आज्ञा हो।

नील॰––कुमार, तुम अच्छी तरह जानते हो कि यवन-सेना कितनी असंख्य है और यह भी भली भाँति जानते हो कि जिस दिन महाराज पकड़े गए उसी दिन बहुत राजपूत निराश होकर अपने-अपने घर चले गए। इससे मेरी बुद्धि में यह बात आती है कि इनसे एक ही बेर सम्मुख युद्ध न करके कौशल से लड़ाई करना अच्छी बात है।

सोम॰––(कुछ क्रोध करके) तो क्या हम लोगों में इतनी सामर्थ्य नहीं कि यवनों को युद्ध में लड़कर जीतें?

सब क्षत्री––क्यों नहीं?

नील॰––(शांत भाव से) कुमार, तुम्हारी सर्वदा जय है। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारा कहीं पराजय नहीं है। किंतु माँ की आज्ञा मानना भी तो तुमको योग्य है।

सब क्षत्री––अवश्य, अवश्य।