सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/६४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।


छेदश्चंदनचूतचम्पकवने रक्षा करीरद्रुमे
हिंसा हंसमयूरकोकिलकुले काकेषुलीलारतिः।
मातङ्गेन खरक्रयः समतुला कर्पूरकासियोः
एषा यत्र विचारणा गुणिगणे देशाय तस्मैनमः॥*

[]


  1. *चंदन, आम तथा चपा के वन को काटकर करीर वृक्ष की जो रक्षा करता है; हंस, मोर तथा कोयल को मार कर कौए की लीला में प्रेम रखता है; हाथी देकर गदहा खरीदता है और कपूर तथा कपास को समान समझता है। जहाँ के गुणी लोगों के ऐसे विचार हों उस देशको नमस्कार है।