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सतीप्रताप
(एक गीतिरूपक)
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पहला दृश्य
स्थान--हिमालय का अधोभाग
(तृण-लता-वेष्टित एक टीले पर बैठी हुई तीन अप्सरा गाती हैं
प० अप्सरा--
(राग झिझौटी)
जय जय श्री रुकमिन महरानी।
निज पति त्रिभुवन-पति हरिपद में छाया सी लपटानी॥
सती-सिरोमनि रूपरासि करुनामय सब गुनखानी।
दू० अप्सरा--
(राग जगला या पीलू)
जग में पतिव्रत सम नहिं आन।
नारि हेतु कोउ धर्म न दूजो जग में यातु समान॥
अनसूया सीता सावित्री इनके चरित प्रमान।