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भारतेंदु-नाटकावली

(लावनी)
लवंगी--
सखि! बाले जोबन महा कठिन ब्रत कीनो।
यह जोग भेख कोमल अंगन पर लीनो॥
अबहीं दिन तुमरे खेल-कूद के प्यारी।
पितु मातु चाव सों भवन बसो सुकुमारी॥
औढौ पहिरौ लखि सुख पावै महतारी।
बिलसौ गृह संपति सखी गई बलिहारी॥
तजि देहु स्वॉग जो सबही बिधि सो हीनो।
यह जोग-भेष जो कोमल अँग पर लीनो॥
मधु०--सखि! यही जगत की चाल जिती हैं क्वारी।
उनके सबही बिधि मात-पिता अधिकारी॥
जेहि चाहैं ताकहॅ दान करै निज बारी।
यामैं कछु कहनो तजनो लाज दुलारी॥
बिनती मानहु हठ मॉहि बृथा चित दीनो।
यह जोग-भेष जो कोमल अँग पर लीनो॥
सुर--सखि! औरहु राजकुमार बहुत जग मॉहीं।
विद्या-बुधि-गुन-बल-रूप-समूह लखाहीं॥
चिरजीवी प्रेमी धनी अनेक सुनाहीं।
का उन सम कोऊ और जगत में नाहीं॥