पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७१८

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इस प्रकार जब जब दानवों द्वारा उठाई वाधा पैदा होती है तब तब मैं अवतार लेकर शत्रु का नाश करती हूँ।

यह पूरा श्लोक इस प्रकार है:----

विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियाः समस्ताः सकला जगत्सु।
स्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरापरोक्तिः॥

हे देवि सभी विद्याएँ तथा संसार में कलायुक्त सभी स्त्रियाँ तुम्हारी ही भेद है, तुम्ही एक माता से यह जगत् पूर्ण है तब स्तुति योग्य परा, पश्यन्ति मध्यमा आदि उक्तियो से तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है।

[ दुर्गापाठ ]

अंग्रेजी---

'जो चुंबन उसने दिया था वही प्रथम और अंतिम था, वह कटार का चुंबन था, जो उसके हृदय तक तथा उसके पार घुसेड़ दिया गया था। उसके पैरो के नीचे नीच रक्त में भरकर वह लोटने लगा। उसके छाती में कटार, जहाँ स्थित था, वहीं कॉपता था और उसके कब्जे को ओर उसकी अँगुलियाँ व्यर्थ ही तथा वेग से बढ़ती थीं, पर उसके बाद निर्जीव हो अकड़ गई। 'मर, ए घातक मर।' उसने शरीफ की तलवार उसके जड़ाऊ म्यान से खींच लिया और मुसलमान सर्दार के गले पर निरर्थक ही चलाया। तारों के प्रकाश के नीचे यह मृतक-दृश्य! देवी काली