पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/१००७

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किसी नगर में उतरो तो जो तुम मांगते हो तुमको मिलै । तब उन पर विपत्ति और दैन्य पड़ा और ईश्वर का कोप हुआ क्योंकि वह ईश्वर की आज्ञा नहीं मानते थे और आचार्यों को व्यर्थ मार डालते थे और वह आज्ञा के विरुद्ध थे और उन्होंने सीमा उल्लंघन की थी । जो लोग मुसलमान' या यहूदी या क्रिस्तान या साबईन जो कोई ईश्वर पर और प्रलयकाल पर विश्वास करता है और अच्छा काम करता है, तो वह ईश्वर से अपनी कमाई पाता है और न उसको डर है, और न वह दु:ख भोगता है । जब हमने पर्वत" ऊंचा किया और तुमसे वाक्य लिया और कहा कि जो हमने तुमको दिया उसको बल से पकड़ो जिसमें तुमको भय हो फिर इसके पीछे तुम फिर गए सो इस अवसर पर जो ईश्वर की उदारता और दया तुमपर न होती तो तुम नाश हो जाते और तुम जानते हो कि तुम लोगों में से जिसने अतवार के दिन उपद्रव किया उनको हमने शाप दिया कि बंदर हो जाओ और इस कथा को जो उस जात के लोग हैं वा होंगे उनके हेतु हमने विभीषिका रखा कि इससे उनको भय और उपदेश हो । और जब मूसा ने अपनी जाति को कहा कि एक बछड़ी बलि दो तो उन्होंने कहा कि तुम हँसी करते हौ । मूसा ने कहा कि मैं इन मूखों की मंडली में ईश्वर से शरण मांगता हूँ तब वह बोले कि अपने ईश्वर को पुकार कि वह हमसे वर्णन करै कि वह गाय कैसी है । उसने कहा वह न बूढी है न बिन ब्याई और इन सभों में डील की छोटी है लो अब जो ईश्वर ने आज्ञा किया है करो । फिर उन्होंने कहा अपने ईश्वर को पुकार कि वह उसका रंग बतलाबै । मूसा ने कहा कि वह एक गहिरे पीले रंग की गाय है जिसके देखने से नेत्रों को आनंद होता है । वे बोले हमारे वास्ते अपने ईश्वर को पुकार कि वह वर्णन करें कि वह किस जात की गाय है क्योंकि हमको गायों में संदेह हो गया है और ईश्वर ने चाहा तो हम सन्मार्ग पर आवैगे । उसने कहा कि ईश्वर कहता है कि वह परिश्रम करनेवाली गाय नहीं है जो पृथ्वी जोते खैत सीचे न उसके शरीर पर रोम है तब उन लोगों ने कहा कि अब तुमने सच्ची बात कही और फिर उसका बलि दिया परंतु उससे दूर रहे । फिर तुमने एक मनुष्य को मार डाला पर उसका कलंक एक दूसरे को देते थे और ईश्वर की इच्छा थी कि जो तुम छिपाते हो वह प्रगट हो, फिर हमने कहा कि इस मुरदे पर बलि दी हुई गाय के शरीर का टुकड़ा मारो जिससे परमेश्वर उस मृतक को जिलावैगा और तब तुमको उस पर विश्वास आवैगा । फिर भी तुम लोगों के चित्त पत्थर की भांति वरञ्च उससे भी कठोर हो गए और पत्थर में तो ऐसे भी होते है जिनसे नहरें निकलती हैं और ऐसे भी होते हैं जो फट जाते हैं और उनके नीचे से पानी निकलता है और ऐसे भी होते हैं जो ईश्वर के भय से गिर पड़ते हैं, और ईश्वर तुम्हारे सब कर्मों का ज्ञाता है । तो हे विश्वासी गण क्या तुम को आशा है कि यहूदी लोग तुम्हारी बात सुनेंगे ? इन्हीं लोगों ने ईश्वर के वाक्य पहिले सुने और उससे फिर गए, ये लोग जब विश्वासियों से मिलते हैं कहते हैं कि हम भी विश्वास लाए पर जब एकांत में एक दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं कि तुम पर जो परमेश्वर ने प्रगट किया है वह उनसे (अर्थात् मुसलमानों से) क्यों कहते हो क्योंकि इससे वे ईश्वर के सामने तुम्हीं को झूठा बनावैगे, परंतु यह नहीं जानते और इतनी बुद्धि तुमको नहीं है कि ईश्वर जो तुम छिपाया चाहते हो और जो प्रगट किया चाहते हो सब जानता है और कितने उनमें ऐसे हैं जो धर्म पुस्तक पढ़ते हैं परंतु उनको ज्ञान नहीं है और व्यर्थ के मनोरथ किया करते हैं इससे उनके पास सेवाय तर्क वितर्कों के और कुछ नहीं है । और वे लोग अपराधी हैं जो पुस्तक अपने हाथ से लिखते हैं और कहते हैं कि यह ईश्वर के यहाँ से आई है १. म. मुहम्मद का मत मानने वाले । २. म. मूसा का मत मानने वाल । ३. म. ईसा का मत मानने वाले । ४. म. इब्राहीम का मत माननेवाले । इस मत के लोग अब नहीं देख पड़ते। ५. तूर पर्वत० जब तौरेत उतरी तब लोगों ने कहा कि यह सब आज्ञा हमसे न मानी जायगी इस हेतु उनको भय दिखलाने को ईश्वर ने तूर पर्वत ऊंचा किया कि उनके ऊपर गिर पड़े। ६. इससे यह ध्वनि निकली कि जो पशु खेती बारी के काम आवे और दूध दें उनकी बलि नहीं देना । ७. तौरेत । ८. उस समय में यहूदी लोग मुसलमानों के सामने जो तौरेत में से अंतिम ईश्वर दूत (म. मुहम्मद) की महिमा सुनावें तो पीछे विरोधी लोग उनसे रुष्ट होते थे क्यों ऐसा करते हो । हिन्दी कुरान शरीफ ९६३