पृष्ठ:भारतेंदु समग्र.pdf/२७२

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आल्हा बिरहहु को भयो अगरेजी अनुवाद । । बैर फूट ही सो भयो सब भारत को नास । यह लखि लाज न आवई तुमहिं न होत बिखाद ।७७तबहु न छाँड़त याहि सब बंधे मोह के फाँस ।८८ अंगरेजी अरु फारसी अरबी संस्कृति ढेर । छोड़हु स्वारथ बात सब उठहु एक चित होय । खुले खज़ाने तिनहिं क्यों लूटत लावहु देर ।७८ मिलहु कमर कसि भ्रातगन पावहु सुख दुख खोय ।८९ सबको सार निकाल कै पुस्तक रचहु बनाइ । बीती अब दुख की निसा देखहु भयो प्रभात । छोटी बड़ी अनेक बिध बिबिध विषय की लाइ ।७९ उठहु हाथ मुंह धोइ कै बाँधहु परिकर भ्रात ।९० मेटहु तम अज्ञान को सुखी होहु सब कोय । या दुख सों मरनो, भलो, घिग जीवन बिन मान । बाल वृद्ध नर नारि सब विद्या संजुत होय ।८० तासों सब मिलि अब करहु बेगहि ज्ञान विधान ।९१ फूट बैर को दूरि करि बाँधि कमर मजबूत । कोरी बातन काम कछु चलिहै नाहिन मीत । भारत माता के बनो भ्राता पूत सपूत ।८१] तास उठि मिलि के बेग परस्पर प्रीत ।९२ देव पितर सबही दुखी कष्टित भारत माय । परदेसी की बुद्धि अरु वस्तुन की करि आस । दीन दसा निज सुतन की तिनसों लखी न जाय ।८२ पर-बस हवै कब लौ कहो रहिहो तुम हवै दास ।९३ दुख सहिहौ सबै रहिही बने गुलाम । काम खिताब किताब सौं अब नहिं सरिहै मीत । पाइ मूढ कालो अरध-सिक्षित काफिर नाम । ८३ तासों उठहु सिताब अब छाँड़ि सकल भय भीत ।९४ बिना एक जिय के भये चलिहै अब नहिं काम । निज भाषा, निज घरम, निज मान करम ब्यौहार । तासों कोरो ज्ञान तजि उठहु छोड़ि बिसराम ।८४ सबै बढ़ावहु बेगि मिलि कहत पुकार पुकार ।९५ लखहु काल का जग करत सोवहु अन तुम नाहिं । लखहु उदित पूरब भयो भारत-भानु प्रकास । अब कैसो आयो समय होत कहा जग माहिं ।८५ उठहु खिलावहु हिय-कमल करहु तिमिर दुख नास ।९६ बढ़न चहत आगे सबै जग की जेती जाति । करहु बिलम्ब न भ्रात अब उठहु मिटावहु सूल । बल बुधि धन विज्ञान में तुम कहँ अबहूँ राति ।८६ निज भाषा उन्नति करहु प्रथम जो सब को मूल ।९७ लखहु एक कैसे सबै मुसलमान क्रिस्तान । लहहु आर्य भ्राता सबै विद्या बल बुधि ज्ञान ! हाय फूट इक हमहिं में कारन परत न जान |८७ मेटि परस्पर द्रोह मिलि होहु सबै गुन-खान ।९८ कब लौ 61 OR अपवर्गदाष्टक* रचनाकाल-सन् १८७७ परब्रह्म परमेश्वर परमातमा परात्पर । फैली फिरि फिरि चंद्रफेन सी बदन-कातिबर । पर पुरुष पदपूज्य पतित-पावन पद्मावर । फलस्वरूप फबि रही फूल-माला गल सुंदर । परमानंद प्रसन्नवदन प्रभु पन-विलोचन । पुरुषोत्तम प्यारे भाखिए संक तजे 'हरिचंद' जिम । मानाम पुण्डरीकाक्ष प्रनतारति-मोचन । तुम नाम पवर्गी पाइ प्रिय अपवर्गी गति देत किमि । २ पुरुषोत्तम प्यारे भाखिए संक तजे 'हरिचव' जिम । ब्रजपति बूंदाबन-बिहार-रत बिरह-नसावन । तुम नाम पबर्गी पाइ प्रिय अपवर्गी गति देत किमि ।१ बिष्णु ब्रह्म बरदेश बरहवर सीस सुहावन । बनमाली बलरामानुज बिधु विधि-बंदित बर । फनपति फनप्रति फूकि बाँसुरी नृत्य प्रकासन । बिबुधाराधित बिधुमुख बुधनत विदित बेनुधर । फनिपति-नाथ फनीश-शयन फनि बैरि कृतासन । | पुरुषोत्तम प्यारे भाखिए संक तजे 'हरिचंद' जिमि ।

कवि-वचन-सुधा शनिवार अ. जेष्ठ कृष्ण ६ संवत १९३४ में प्रकाशित ।

भारतेन्दु समग्र २३०